पुर्तगालियों का आगमन: व्यापार और नीतियां [UPSC GS]

पुर्तगालियों का आगमन: व्यापार और नीतियां [UPSC GS]

औपनिवेशिक भारत की शुरुआत यूरोपीय देशों के महत्वाकांक्षा से शुरू होता है। इस समय सबसे पहले पुर्तगाली लोग भारत आये और तेजी से अपनी विकसित समुद्री शक्ति, तकनीक और दृढ़ इच्छा के कारण हिन्द महासागर क्षेत्र में प्रभुत्व स्थापित कर दिया। लेकिन 15वी सदी के शुरुआत में मूल रूप से व्यापार के कारण ही पुर्तगालियों सहित सभी यूरोपीय लोग दक्षिण पूर्व एशिया की तरफ आकर्षित हुए।

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पुर्तगालियों का आगमन

पुर्तगालियों का भारत आने का क्या कारण था

इसके निम्न कारण थे:

  • वणिकवाद और पूंजीवाद (Merchantism and Capitalism): 15 वी सदी से शुरू हुए यूरोप में वणिकवाद ने पूंजीवाद और निवेश को बढ़ावा दिया जिससे जहाजरानी उद्योग बड़ी तेज़ी से फैला। इस कारण दूर समुद्री यात्रा करना आसान हो गया। कैम्पस और दूरबीन के अविष्कार ने लम्बी जहाज यात्राओं को संभव बना दिया था, इसका सबसे पहले लाभ स्पेन और पुर्तगालियो ने उठाया
  • व्यापारिक महत्वकांशा (commercial ambition): कुस्तुनतुनिया के पतन के बाद अरबों का हिन्द महासागर के व्यापार पर अधिकार था, यूरोपीय इसे तोडना चाहते थे। पुर्तगालियों ने सबसे पहले अरब व्यापारियों के एकाधिकारों को चुनौती दी।
  • धार्मिक उद्देश्य (religious purpose): बाइबिल की बातो की सत्यता को जानना और ईसाई धर्म को फैलाना भी पुर्तगालियो का उद्देश्य रहा

पुर्तगालियों ने हिन्द महासागर में कैसे वर्चस्व जमाया ?

1. प्रिंस हेनरी – द नेवीगेटर (Prince Henry – The Navigator)

पुनर्जागरण और वैज्ञानिक खोजो के बाद स्पेन और पुर्तगाल ने सबसे पहले समुद्री नेविगेशन में कदम रखा। पुर्तगाल के प्रिंस हेनरी ने इसमें बेहद रूचि दिखाई और बड़े बड़े निवेश किये, प्रेरणा दी।

प्रिंस हेनरी – द नेवीगेटर (Prince Henry – The Navigator)

इस कारण पुर्तगाल के एक नाविक बार्थोलोमियोडियाज (bartholomeodies) ने 1487 ईस्वी में उत्तमाशा अंतरीप (Cape of Good Hope) की खोज की। इसलिए हेनरी को दी नेविगेटर (Prince Henry – The Navigator) कहा जाने लगा।

2. तकनीक और आक्रामकता

समुद्री रास्तों को हथियाने के लिए पुर्तगालियों में आक्रामक रूख अपनाया। वह पहले से अरबो की तुलना में बेहतर थे क्यों तकनीकी रूप से उन्नत थे। उन्होंने अरब जहाजों पर आक्रमण किया, उन्हें लूटा और नष्ट कर दिया। इससे हिन्द महासागर में उनकी स्थिति काफी मजबूत हो गयी थी। 1501 ईस्वी में पुर्तगाल के शासक मैन्युअल ने अरब, फारस और भारत के साथ व्यापर के लिए खुद को मालिक घोषित कर दिया।

तकनीक और आक्रामकता

3. एस्टाडो दी इंडिया (Estado da India)

1509 में दीव और 1510 ईस्वी में गोवा पर अधिकार ज़माने के बाद किस्मत से स्पैनिश राजा चार्ल्स पंचम ने हिन्द महासागर में अपने हितों को छोड़ने और पूर्व में केवल फिलीपींस तक स्वयं को सीमित रखने की घोषणा की, इसके कारण अब केवल हिन्द महासागर में पुर्तगाली बचे थे। जिससे उनका पूरा वर्चस्व स्थापित हो गया। इसके बाद पुर्तगाली एस्टाडो दी इंडिया (Estado da India) के नाम से जाना जाने लगे।

पुर्तगालियों के आगमन के समय भारत की राजनीतिक परिस्थितियाँ

पुर्तगाली मुगलों के समय भारत आये। उन्होंने अकबर से काफी रियायत हासिल कर ली थी। इस समय भारत छोटी मोटी रियासतों में बंटा हुआ था केवल गुजरात में महमूद बेगड़ा का शासन था। दक्षिण में बहमनी राज्य टूट चूका था। इस प्रकार भारत में मूलतः मुगलों की उपस्थिति थी।

पुर्तगालियों का दीव और गोवा पर अधिकार

कालीकट का राजा जमोरिन पुर्तगालियो की हरकतों से गंभीर नहीं था। लेकिन पुर्तगाली लगातार अपना वर्चस्व कायम करने का प्रयास कर रहे थे। इस बीच पुर्तगालियो ने जमोरिन से मुसलमान व्यापारियों को हटाने के लिए बोलै लेकिन जमोरिन ने इंकार कर दिया और दोनों में दुश्मनी शुरू हो गयी और संघर्ष भी हुआ।

लेकिन पुर्तगाली पूछे नहीं हटे उन्होंने कूटनीति से काम करना शुरू किया और बेहद चतुराई से कोचीन और कालिकट के राजाओ की शत्रुता का लाभ उठाया। इस क्रम में उन्होंने कोचीन के राजा के लिए मालाबार में एक किला बनवा कर विश्वास जीता। 1509 ईस्वी में पुर्तगालियो ने दीव पर कब्ज़ा किया और अगले ही वर्ष 1510 ईस्वी में गोवा पर कब्ज़ा कर लिया।

भारत में पुर्तगाली साम्राज्य की शुरुआत

फ्रांसिस्को डी अल्मेडा (Francisco de Almeida)

1505 ईस्वी में पुर्तगाल के सम्राट ने भारत में पहली बार 3 वर्ष के लिए गवर्नर नियुक्त किया गया। पहले गवर्नर फ्रांसिस्को डी अल्मेडा थे। इसने निम्न काम किये:

  • अरब व्यापारियों पर आक्रमण किये और अदन, आर्मुज और मल्लका पर कब्ज़ा किया
  • लाल सागर में व्यापारिक सुरक्षा बढ़ाई
  • कोचीन, कन्नोर, किल्वा, अंजादिवा आदि में किलेबंदी की
  • 1507 ईस्वी में जगुजरती और मिस्र की नौसेनाओ को संयुक्त रूप से हराया और दीव की स्थिति मजबूत की

अल्फांसो डी अल्बुकर्क (Alfonso de Albuquerque)

अल्मेडा के बाद 1503 में और 1509 ईस्वी में अल्फांसो डी अल्बुकर्क ने वायसराय की जगह ली, इसने निम्न काम किये:

  • अल्फांसो डी अल्बुकर्क अधिक सक्रिय और योग्य गवर्नर था, उसने पुर्तगाली साम्राज्य को पूर्व में व्यापक रूप में फ़ैलाने की सोची
  • हिन्द महासागर में सैनिक बेस स्थापित किये
  • 1510 ईस्वी में बीजापुर से गोवा छीन कर साम्राज्य में मिलाया, साथ साथ दमन, राजोरी और दाभोल बंदरगाहों पर भी कब्ज़ा कर लिया
  • इसने हिन्दू महिलाओ से विवाह किये ताकि रणनीतिक रूप से प्रभाव बढ़ाया जा सके
  • 1515 ईस्वी में मलक्का और कुरसुम (ईरान ) पर पुर्तगाली अधिपत्य जमाया
  • इसके समय ही पुर्तगाली सेना मजबूत नौसेना के रूप में उभरी जिसने पुर्तगाली साम्राज्य को काफी मजबूत बना दिया था

पुर्तगालियों की फैक्ट्रियां (व्यापारिक बेस)

पश्चिमी भारत में पुर्तगालियों ने कई कारखाने या व्यापारिक बेस स्थापित किये : नागपट्टनम, सैन्थोम, चटगांव, मुसलीपत्तनम, चाओल, दीव, सालसेट, बेसिन, क्रैंगनोर, मैंगलोर, होनवार भटकल , कन्नूर, क्विलोन, भावनगर आदि।

पुर्तगालियों की व्यापारिक व्यवस्था और नीतियां

पुर्तगालियों की नीतियां तकनीक और आक्रामकता पर आधारित थी। इनकी निम्न नीतिया थी:

1. कार्टेज व्यवस्था

कार्टेज व्यवस्था एक प्रकार की वसूली थी। जिसमे हिन्द महासागर में, जहां पुर्तगाली थे, वहां बिना पुर्तगाली लाइसेंस के कोई जहाज को जाना प्रतिबंधित था। प्रे भारतीय जहाजों को गोवा के वायसराय से लाइसेंस लेकर व्यापर करना पड़ता था। बिना लाइसेंस वाले जहाजों पर हमला कर लूट लिया जाता था।

2. मुगलो के केंद्रीय शासन के बावज़ूद पुर्तगाली कैसे मनमानी कर पाए ?

चूँकि मुगलों का सारा ध्यान भारतीय सीमाओं पर ज्यादा था अतः वे नौसेनाओ को मजबूत नहीं कर पाए। साथ साथ पुर्तगाली मुगलो को कभी नाराज़ भी नहीं करना चाहते थे इसलिए कभी सीधा विरोध भी नहीं किया। इसलिए पुर्तगाली सशक्त मुगलों के शासन होते हुए भी मनमाना व्यापार कर पाए

मुगल दरबार में पुर्तगाली

3. काफिला व्यवस्था

हिन्द महासागर में काफिला व्यवस्था एक सुरक्षा घेरा था। प्राय पुर्तगाली समुद्री डाकुओ से बड़े बड़े जहाजों के काफिले को बचने के लिए सुरक्षा मुहया करवाते थे इसके लिए यह फ़ीस भी वसूला करते थे।

4. पुर्तगालियों का व्यापार का सामान

पुर्तगालियों के पास ऐसी कोई चीज़ नहीं थी जिसके बदले भारत से व्यापार किया जा सके। अतः ये सोना और चांदी भारत लाने लगे और काली मिर्च, मसाले यूरोप ले जाया करते थे। इसके अलावा चिंट्स (एक महीन कपडा), कस्तूरी आदि भी ले जाया करते थे।

यह आर्टिकल आधिकारिक स्त्रोत जैसे प्रमाणित पुस्तके, विशेषज्ञ नोट्स आदि से बनाया गया है। निश्चित रूप से यह सिविल सेवा परीक्षाओ और अन्य परीक्षाओ के लिए उपयोगी है।

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