पुनर्जागरण (Renaissance) 14वी से 15वी शताब्दी के बीच एक सांस्कृतिक विकास या प्रगति को दर्शाता है। जिसमे रूढ़िवादी तत्वों की तार्किक आलोचना से अंधविश्वास की जगह विवेक ने स्थान लिया और मानवतावाद, स्वतंत्रता, समानता, विज्ञान, दर्शन आदि आधुनिक मूल्यों ने यूरोप के दिमागों में जगह बना ली थी।
- पुनर्जागरण (Renaissance) क्या है ?
- पुनर्जागरण के क्या कारण थे ?
- 1. पूंजीवाद और सामंतवाद के बीच संघर्ष: सामंतवाद की हार और मध्यम वर्ग का उदय
- 2. व्यापार और वाणिज्य का विकास
- 3. धर्मयुद्ध (Crusades) का प्रभाव
- 4. कॉन्स्टेंटिनोपल (कुस्तुनतुनिया) का पतन
- 5. रोमन ज्ञान का यूरोप में फ़ैल जाना और इतिहास को याद करना
- 6. विज्ञान और दार्शनिकों के तर्कों का प्रभाव
- 7. चर्च के प्रभाव में गिरावट
- 8. प्रिंटिंग प्रेस और पेपर का आविष्कार
- 9. भौगोलिक यात्राएँ : नए व्यापार मार्ग (मार्कोपोलो की यात्रा)
- पुनर्जागरण की शुरुआत सबसे पहले इटली में क्यों हुई?
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पुनर्जागरण (Renaissance) क्या है ?
14वी सदी यूरोप की मानसिक जागरण का शुरुआती काल रहा है जब यूरोप के लोगो के मष्तिष्क में ज्ञान द्वारा विवेक को पुनर्जाग्रित किया गया। पुनर्जागरण एक प्रकार से पुनर्जन्म (Rebirth) है जहाँ दार्शनिक और विचारकों के तर्कों ने जिज्ञासा, चेतना और विवेक को पैदा कर दिया था। यह बदलाव 17 वी सदी तक अलग अलग सांस्कृतिक रूपों में चला।
पुनर्जागरण के क्या कारण थे ?
पुनर्जागरण के कई कारण रहे लेकिन मूल कारण आर्थिक थे जब सामंतवाद से पूंजीवाद अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहा था। संक्षेप में इसके निम्न कारण थे :
- पूंजीवाद और सामंतवाद के बीच संघर्ष: सामंतवाद की हार और मध्यम वर्ग का उदय
- व्यापार और वाणिज्य का विकास
- धर्मयुद्ध (Crusades) का प्रभाव
- कॉन्स्टेंटिनोपल (कुस्तुनतुनिया) का पतन
- रोमन ज्ञान का यूरोप में फ़ैल जाना और इतिहास को याद करना
- विज्ञान और दार्शनिकों के तर्कों का प्रभाव
- चर्च के प्रभाव में गिरावट
- प्रिंटिंग प्रेस और पेपर का आविष्कार
- भौगोलिक यात्राएँ : नए व्यापार मार्ग (मार्कोपोलो की यात्रा)
- प्रगतिशील शासकों और कुलीनों पर दार्शनिकों का प्रभाव
1. पूंजीवाद और सामंतवाद के बीच संघर्ष: सामंतवाद की हार और मध्यम वर्ग का उदय
पुनर्जागरण का मूल कारणों में से सबसे मुख्य सामंतवाद का पतन, जो मध्ययुगीन काल में जीवन का आधार था, ने पुनर्जागरण के उदय में बहुत योगदान दिया। फ्रांस और इटली में तेरहवीं शताब्दी के अंत तक जो सामंतवाद कम होना शुरू हुआ, वह 1500 ईस्वी तक पश्चिमी यूरोपीय देशों से लगभग गायब हो गया।
मध्यम वर्ग का उदय जिसने सामंतवाद के पतन में एक प्रमुख भूमिका निभाई, मध्यम वर्ग जिसमें पूंजीवादी लोग, व्यापारी मौजूद थे। मध्यम वर्ग ने राजाओं को सेनाओं के रखरखाव के लिए आवश्यक धन उपलब्ध कराया और इस तरह उन्हें सामंती प्रभुओं पर अपनी निर्भरता कम करने में सक्षम बनाया।
2. व्यापार और वाणिज्य का विकास
इसके अलावा, इस अवधि के दौरान व्यापार और वाणिज्य के विकास के कारण, कीमतों में काफी वृद्धि हुई जिससे शिल्पकारों, व्यापारियों और किसानों को बहुत लाभ हुआ। चूंकि सामंत अपने किराए में वृद्धि नहीं कर सके, इसलिए उन्हें खुद को बनाए रखने के लिए उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
चूंकि सामंत ऋण चुकाने में सक्षम नहीं थे, इसलिए वे अक्सर अपनी जमीन बेचने के लिए बाध्य होते थे। इसने सामंतवाद और जागीरदार जीवन को एक गंभीर झटका दिया। इसने पुनर्जागरण का मार्ग प्रशस्त किया।
3. धर्मयुद्ध (Crusades) का प्रभाव
ईसाइयों और तुर्की के शासकों (मुस्लिम लोग) के बीच धर्मयुद्ध (Crusades) या युद्ध जो 11वीं और 14वीं शताब्दी के बीच लड़े गए और जिसके परिणामस्वरूप अंततः तुर्की की जीत हुई, ने भी पुनर्जागरण को गति प्रदान की।
धर्मयुद्ध के परिणामस्वरूप पश्चिमी विद्वान पूर्व के संपर्क में आए जो ईसाइयों की तुलना में अधिक सभ्य थे। कई पश्चिमी विद्वान काहिरा, कुफा और कार्डोना आदि विश्वविद्यालयों में गए और कई नए विचार सीखे, जो बाद में यूरोप में फैल गए
क्रूसेड का योगदान
धर्मयुद्ध धार्मिक युद्ध थे जो ईसाइयों और मुसलमानों के बीच यरूशलेम में और उसके पास पवित्र भूमि को नियंत्रित करने के लिए लड़े गए थे। जब यूरोपीय लोग मुसलमानों के खिलाफ युद्ध लड़ने गए, तो वे उन अरबों के संपर्क में आए जिन्होंने विज्ञान, गणित और कला में बहुत प्रगति की थी। इससे यूरोप में पुनर्जागरण की शुरुआत हुई।
4. कॉन्स्टेंटिनोपल (कुस्तुनतुनिया) का पतन
1453 ई. में तुर्कों के हाथों कांस्टेंटिनोपल के पतन (The Fall of Constantinople) ने पुनर्जागरण को एक अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन प्रदान किया। बड़ी संख्या में यूनानी और रोमन विद्वान जो कांस्टेंटिनोपल (कुस्तुनतुनिया) के पुस्तकालयों में काम कर रहे थे, बहुमूल्य साहित्य के साथ यूरोप के विभिन्न हिस्सों में भाग गए। उन्होंने विभिन्न यूरोपीय देशों में ग्रीक और लैटिन पढ़ाना शुरू किया।
उन्होंने ग्रीक और लैटिन साहित्य की खोई हुई पांडुलिपियों की खोज की और ऐसे कई कार्यों की खोज की जिन्हें अब तक अनदेखा और उपेक्षित किया गया था। उन्होंने सुकरात, प्लेटो, अरस्तु, पाइथागोरस आदि लैटिन विचारकों के लेखन का अध्ययन किया और उनका संपादन किया और बाद में उनके मूल संस्करणों को मुद्रित किया। उनके विचारों को पढ़ कर कई और दार्शनिक पैदा हुए और मानसिक क्रांति संभव हुई।
5. रोमन ज्ञान का यूरोप में फ़ैल जाना और इतिहास को याद करना
कुस्तुनतुनिया का पतन, अनेक लोग भाग आकर यूरोप आये और उन्होंने प्राचीन रोम और लैटिन ज्ञान को फैलाना शुरू किया। सुकरात और रोमन साम्राज्य को याद किया गया। इससे लोगो का ध्यान प्राचीन ज्ञान की और गया। लेकिन सौभाग्य से प्राचीन रोमन ज्ञान अधिकारों, नैतिकता, तार्किकता और ज्ञान की बातें ज्यादा करता था न की धार्मिक अन्धविश्वास की। यही काल 1453 ईस्वी था जहा से लोग तार्किक रूप से सोचने लगे।
6. विज्ञान और दार्शनिकों के तर्कों का प्रभाव
गैलीलियो और कोपरनिकस क्रांति
इस अवधि के दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आविष्कार और खोजें की गईं। गैलीलियो ने दूरबीन का आविष्कार किया और तारों और ग्रहों की गति को देखा। कोपरनिकस ने सिद्ध किया कि पृथ्वी ही सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है न कि इसके विपरीत। इन खोजों ने लोगों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाया और चर्च द्वारा उन पर लागू की गई पुरानी मान्यताओं और परंपराओं को समाप्त कर दिया।
![पुनर्जागरण क्या था और कारण [Renaissance kya / karan] [in Hindi / UPSC GK]](https://bugnews.in/wp-content/uploads/2022/02/copernicus-punarjagran.jpg)
1453 ईस्वी में कोपरनिकस क्रांति हुई, उनकी किताब दी रेवोलुशनीबस ऑर्बियम केलेस्टियम (De revolutionibus orbium coelestium) में बताया गया की पृथ्वी सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती है न की सूर्य। यह सुनकर चर्च और रूढ़िवादी लोगों ने इसका काफी विरोध किया लेकिन इसकी पुष्टि हो गयी थी। इसने लोगों का अन्धविश्वास को चकनाचूर कर दिया और लोग विज्ञान और विवेक से सोचने लगे। वैज्ञानिक प्रयोगो और आविष्कारों की श्रृंखला शुरू हुई।
चर्च का विरोध
विज्ञान और लैटिन ज्ञान को दार्शनिकों ने अपनाया और नए विवेक और सोच का जन्म दिया। रोजर बेकन ने ऐसी गाड़ी की कल्पना की जो हवा में उड़ सके। मानवतावाद, समानता और स्वतंत्रता की बाते दार्शनिक करने लगे। रोजर बेकन और थॉमस एक्विनास जैसे विचारकों ने तर्क पर बहुत जोर दिया और लोगों से अपनी सोच विकसित करने और चर्च के हठधर्मिता को आँख बंद करके स्वीकार न करने के लिए कहा। कला को प्रोत्साहित किया जाने लगा।
दूरबीन की खोज से लोग आकाश को देखने में सक्षम हुए और खगोल विज्ञान के अध्ययन में एक नई शुरुआत की। उन्हें सौरमंडल में पृथ्वी की वास्तविक स्थिति के बारे में पता चला। यह सारा ज्ञान चर्च की शिक्षाओं के खिलाफ गया और कोई आश्चर्य नहीं कि इसने चर्च प्रणाली को कमजोर करने में योगदान दिया।
7. चर्च के प्रभाव में गिरावट
मध्यकालीन समाज पर हावी चर्च को तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी में एक झटका लगा। चर्च की अस्थायी शक्ति को कई मजबूत सम्राटों ने चुनौती दी थी। 1296 ई. में फ्रांस के राजा फिलिप चतुर्थ ने पोप को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें बंदी बना लिया।
इसने पोप की शक्ति और प्रतिष्ठा को गंभीर आघात पहुँचाया। यहां तक कि आम लोगों का भी चर्च पर से विश्वास उठ गया क्योंकि चर्च महंगे अनुष्ठानों और बाजार पर ध्यान देने लगे थे। चर्च कैसा भी हो कैथोलिक या प्रोटेस्टेंट, लेकिन दोनों रूढ़िवादी और विकास के विरोधी थे। चर्च लोगो के जीवन में बहुत ज्यादा हस्तक्षेप करता था और राजा पर भी नियंत्रण कर रहा था। चर्च ने विवेक को ख़त्म किया हुआ था लेकिन विज्ञान और दार्शनिको के तर्कों ने चर्च की सत्ता को चोट पहुचायी।
8. प्रिंटिंग प्रेस और पेपर का आविष्कार
प्रिंटिंग प्रेस और कागज़ के आविष्कार से दो बातें हुई :
- सस्ती किताबे उपलब्ध हुई जिससे लोगो तक यह आसानी से पहुंच सकीं।
- अब हर विचार आम लोगो के लिए उपलब्ध थे
कागज़ का अविष्कार चीन में हुआ। इसका ज्ञान अरबों ने सीखा और पूर्व से होता हुआ यह पश्चिम (यूरोप) तक पहुंच गया। यह एक क्रांतिकारी घटना थी। 1454 में जोहानिस गुटेनबर्ग (Johannes Gutenberg) द्वारा प्रिंटिंग प्रेस की खोज ने भी बहुत सहायता की। इसके तुरंत बाद इटली में कई प्रिंटर बने। 1477 में कैक्सटन द्वारा इंग्लैंड में प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत की गई थी।
प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार और उचित मूल्य पर प्रचुर मात्रा में कागज की उपलब्धता ने किताबों की लोकप्रियता में बहुत योगदान दिया और पुनर्जागरण को बढ़ावा दिया।
प्रिंटिंग प्रेस के बिना ज्ञान व्यापक रूप से फैल नहीं सकता था। पहले, पुस्तकों का निर्माण चर्च समर्थको द्वारा किया जाता था या चर्च में स्थापित प्रेस द्वारा मुद्रित किया जाता था और केवल वही पुस्तकें आम जनता तक पहुँचती थीं जिन्हें चर्च द्वारा अनुमोदित किया गया था। इनमे केवल धार्मिक और रूढ़िवादी किताबें थी। बदली हुई परिस्थितियों में किताबों की छपाई चर्च के नियंत्रण से बाहर हो गई और यह संभव हो गया ज्ञान और सोच का प्रसार जो चर्च को स्वीकार्य नहीं थे, वह भी आम लोगों तक पहुंच सकते थे।
9. भौगोलिक यात्राएँ : नए व्यापार मार्ग (मार्कोपोलो की यात्रा)
बाइबल (Bible) में लिखी बातें साहसी यूरोपीय लोगों और शासकों को प्रेरित करती थी। इन बातो का सच जानने के लिए कई बड़े व्यापारी, शासक आदि ने खतरनाक समुद्री यात्राओं के लिए निवेश किया और कई कंपनी बनायी। इन यात्राओं से विश्व का नज़रिया बदला और कई विचारों को आपस में मिलने में मदद मिली।
कंपास की खोज ने बड़ी संख्या में लोगों को लंबी यात्राएं करने के लिए प्रेरित किया क्योंकि उनके लिए यह जानना संभव था कि वे किस दिशा में नौकायन कर रहे थे। लोग दूर के समुद्रों का पता लगाने में भी सक्षम थे। परिणामस्वरूप प्रचलित विश्व के आकार और आकार के बारे में धारणाओं को चुनौती दी गई।
नए समुद्री मार्गों की खोज से यूरोप में हलचल मच गयी और व्यापर प्रसार में मदद मिली। पुर्तगाल और स्पेन ने प्रमुख भौगोलिक अन्वेषणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और नए मार्गों की खोज की।
इन सब के बीच मंगोल दरबार में मार्कोपोलो ने अपनी यात्रा से लौट कर पूरा रोमांचक वृतांत सुनाया। उसके अनुभव सुनकर लोग अचंभित रह गए। बाद में इसका प्रकाशन हुआ और पुरे यूरोप के मष्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा।
पुनर्जागरण की शुरुआत सबसे पहले इटली में क्यों हुई?
1453 ई. में कांस्टेंटिनोपल (कुस्तुनतुनिया) के पतन के बाद, कई यूनानी और रोमन विद्वान अपनी दुर्लभ पांडुलिपियों के साथ इटली भाग गए। इटली शानदार रोमन साम्राज्य का प्राचीन जगह था जहाँ विद्वान रोमन साम्राज्य के अवशेष और लक्षण पा सकते थे। इस प्रकार, वे इटली के प्रति आकर्षित थे। इस क्षेत्र में आगे के शोध ने इटली के लोगों के बीच पूछताछ और उत्साह की भावना पैदा की। इससे इटली में पुनर्जागरण की शुरुआत हुई।
पूर्व के साथ व्यापार के परिणामस्वरूप इटली द्वारा संचित धन भी पुनर्जागरण की शुरुआत का कारण बना। धनी व्यापारियों ने कलाकारों और साहित्यकारों को संरक्षण दिया जिसके परिणामस्वरूप प्राचीन संस्कृति और साहित्य का पुनरुद्धार हुआ।
धर्मयुद्ध और भूमि की खोज ने इटालियंस को पूर्व के संपर्क में ला दिया। इसने उनमें दुस्साहसवाद की भावना पैदा की, जो पुनर्जागरण की शुरुआत का प्रतीक था। जोहान्स गुटेनबर्ग ने प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किया।
पुनर्जागरण के प्रभावों और स्वरूप को जानने के लिए अगले आर्टिकल में बताया जायेगा।
यह आर्टिकल आधिकारिक स्त्रोत जैसे प्रमाणित पुस्तके, विशेषज्ञ नोट्स आदि से बनाया गया है। निश्चित रूप से यह सिविल सेवा परीक्षाओ और अन्य परीक्षाओ के लिए उपयोगी है।
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