त्रिपुरी अधिवेशन,1939 में कांग्रेस में आंतरिक संकट आ गया था यह ठीक वैसा ही था जब सूरत अधिवेशन, 1907 में कांग्रेस में दो समूह उभर आकर बँट गए थे। त्रिपुरी अधिवेशन के समय कांग्रेस में मजबूत वामपंथी और समाजवादियों का ग्रुप मजबूत बन चूका था। जिसका नेतृत्व जवाहर लाल नेहरू और नेताजी सुभाष चंद्र बोस कर रहे थे।
यह केवल सुभाष और गांधीजी के बीच विषय नहीं था बल्कि उस भविष्य का हिस्सा था जिसपर पूरा राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा हुआ था और आगे जाकर वह भारत का भविष्य तय करने वाला था।
- त्रिपुरी अधिवेशन की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- त्रिपुरी अधिवेशन कौनसा वाँ कांग्रेस अधिवेशन था ?
- त्रिपुरी किस राज्य में है ?
- त्रिपुरी अधिवेशन कब हुआ ?
- त्रिपुरी अधिवेशन में चुनाव क्यों हुए ?
- त्रिपुरी अधिवेशन में किन किन बीच चुनाव था ?
- त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाष के सामने कौन चुनाव लड़ रहे थे ?
- सुभाष चंद्र बोस कितने मतों से जीते थे ?
- क्या गांधी जी अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों से प्रभावित थे ?
- सुभाष की जीत पर गांधी जी की क्या प्रतिक्रिया थी ?
- त्रिपुरी अधिवेशन में संकट क्या था ?
- त्रिपुरी अधिवेशन के संकट के बाद क्या हुआ ?
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त्रिपुरी अधिवेशन की पृष्ठभूमि क्या थी ?
1917 के बाद से ही कांग्रेस में वामपंथी विचारधारा का प्रभाव बढ़ने लगा था जिसका परिणाम 1920 में कांग्रेस के संविधान में बदलाव फिर जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे ऊर्जावान नेताओं के उदय से पता चलता है.
जवाहर लाल नेहरू द्वारा पहले ही 1936, 1937 में कांग्रेस अधिवेशनों की अध्यक्षता कर चुके जो कांग्रेस में वामपंथ के उदय का परिणाम थी। उसके बाद सुभाष चंद्र बोस का हरिपुरा में 1938 में कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता करना लगातार बड़ी जीत थी। परन्तु इससे कांग्रेस के अंदर दूसरा ग्रुप दक्षिणपंथी लोग लगातार वामपंथ से असहज थे जिसके कारण त्रिपुरी अधिवेशन में संकट आया।
यह हमें याद है की सरदार वल्लभ भाई पटेल ने गाँधीजी से अपील की थी की वो सुभाष चंद्र बोस को हरिपुरा अधिवेशन का अध्यक्ष न बनाये परन्तु स्वयं गांधीजी सुभाष के कई कामों से बेहद प्रभावित थे इसलिए उन्होंने सुभाष को हरिपुरा अधिवेशन के लिए चुना लेकिन हरिपुरा अधिवेशन के पहले भाषण में सुभाष द्वारा स्टालिन और फासिस्ट मुसोलिनी की प्रशंसा करने पर गांधीजी और सुभाष चंद्र बोस में दूरी बढ़ती चली गयी।
त्रिपुरी अधिवेशन कौनसा वाँ कांग्रेस अधिवेशन था ?
52 वाँ
त्रिपुरी किस राज्य में है ?
यह जबलपुर, मध्य प्रदेश में है
त्रिपुरी अधिवेशन कब हुआ ?
1939 में
त्रिपुरी अधिवेशन में चुनाव क्यों हुए ?
यह आपको बता दे की 1938 तक कांग्रेस में बिना चुनावों द्वारा राष्ट्रीय अध्यक्ष को चुना जाता था। यह गांधीजी की सलाह पर होता था जिसमे सब एकमत हो जाते थे। परन्तु 1938 के हरिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस दो भागों में बंट जाने से त्रिपुरी अधिवेशन में अध्यक्ष के लिए चुनाव करवाने का निर्णय हुआ था।
त्रिपुरी अधिवेशन में किन किन बीच चुनाव था ?
कांग्रेस में वामपंथी (Left-wing) और दक्षिणपंथियों ( Right-wing) के बीच यह चुनाव था। जहा वामपंथ का नेतृत्व सुभाष और जवाहर कर रहे थे वही दूसरी ओर गांधीजी, पटेल थे। वास्तविकता में त्रिपुरी अधिवेशन सुभाष चंद्र बोस और गांधीजी के बीच में था।
त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाष के सामने कौन चुनाव लड़ रहे थे ?
पहले दक्षिणपंथियों की तरफ से मौलाना अब्दूल कलाम आज़ाद को सुभाष चंद्र बोस के सामने खड़ा किया गया परन्तु शीघ्र ही उन्होंने अपना नाम वपिस ले लिया और पट्टाभि सीतारमैया को सुभाष चंद्र बोस के सामने खड़ा किया गया।
सुभाष चंद्र बोस कितने मतों से जीते थे ?
चुनाव 29 जनवरी,1939 को हुआ और इसमें सुभाष चंद्र बोस ने पट्टाभि सीतारमैया को हरा दिया। सुभाष को 1580 मत मिले थे जबकि सीतारमैया को 1377 मत मिले।
क्या गांधी जी अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों से प्रभावित थे ?
1929 की मंदी के बाद साम्यवाद के प्रसार और यूरोप में फासिज़्म के उदय ने औपनिवेशिक अंतर्राष्ट्रीय प्रतीस्पर्धा को कई गुना बड़ा दिया था। जिसके कारन संकीर्ण राष्ट्रवाद और हिंसात्मक राज्यों जैसे जर्मनी, स्पेन, जापान का जन्म हुआ।
इटली में बेनिटो मुसोलिनी के फासिस्ट राष्ट्रवाद और जर्मनी ने नात्सीवाद ने एक बड़े हिंसक राष्ट्रों को जन्म दिया। इन सभी बातो से गाँधी जी भी काफी सक्रिय थे। कालांतर में फासिस्ट राष्ट्रों ने काफी हिंसा और भय को पनपाया। इस क्रम में सुभाष चंद्र बोस का मुसोलिनी की प्रशंसा करना गांधीजी को पसंद नहीं आया .
सुभाष की जीत पर गांधी जी की क्या प्रतिक्रिया थी ?
शुरुआत में गांधीजी स्वयं सुभाष चंद्र बोस से सहमत थे परन्तु सुभाष द्वारा फासिस्ट मुसोलिनी और स्टालिन की प्रशंसा से गांधीजी और सुभाष चंद्र बोस में दूरी बढ़ गयी थी. इसकी वजह थी की गांधीजी किसी भी कीमत पर हिंसा को स्वीकार नहीं करते थे। इसी कारण त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाष की जीत ने गांधीजी को फिर से राजनीतिक सक्रिय बना दिया और वो इससे काफी दुःखी हुए।
31 जनवरी, 1939 को गांधीजी ने एक बयान जारी किया :
“श्री सुभाष चंद्र बोस ने अपने प्रतिद्वंदी डॉ. सीतारमैया पर एक निर्णायक जीत प्राप्त की है। इसे मुझे स्वीकार करना होगा। ….. परन्तु सीतारमैया से ज्यादा यह मेरी हार है..”
महात्मा गांधीजी की प्रतिक्रिया
त्रिपुरी अधिवेशन में संकट क्या था ?
सुभाष चंद्र बोस की जीत के बाद गांधीजी का वक्तव्य ने असहयोग का वातावरण बना दिया। गांधीजी भी नहीं चाहते थे की भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के भावी लड़ाई हिंसा और फासिस्टों की मदद से लड़ी जाये क्योंकि उस समय दूसरा विश्वयुद्ध पर पूरा विश्व खड़ा था। सुभाष के त्रिपुरी अधिवेशन के चुने जाने के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी में असहयोग शुरू हो गया। 22 फ़रवरी, 1939 को 15 में से 13 सदस्यों ने त्यागपत्र दे दिया जिससे कांग्रेस में संकट आ गया।
त्रिपुरी अधिवेशन के संकट के बाद क्या हुआ ?
गांधीजी और सुभाष चंद्र बोस दोनों एक दूसरे का सम्मान करते थे परन्तु वैचारिक मतभेदों ने यह संकट पैदा कर दिया था। इसके बाद, 3 फ़रवरी, 1939 को गांधीजी के बयान के बाद सुभाष का भी बयान आया :
“..यदि मैं देश के महानतम व्यक्ति का विश्वास प्राप्त नहीं कर सकता तो उनकी जीत निरर्थक है..”
सुभाष चंद्र बोस
गोविन्द वल्लभ पंत के प्रस्ताव तथा कांग्रेस वर्किंग कमेटी के असहयोग के बाद सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे कर कांग्रेस के अंदर ही फॉरवर्ड ब्लॉक (Forward block) की स्थापना की।
यह आर्टिकल आधिकारिक स्त्रोत जैसे प्रमाणित पुस्तके, विशेषज्ञ नोट्स आदि से बनाया गया है। निश्चित रूप से यह सिविल सेवा परीक्षाओ और अन्य परीक्षाओ के लिए उपयोगी है।
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