haripura adhiveshan 1938

हरिपुरा अधिवेशन, 1938 -QnAs

हरिपुरा अधिवेशन, 1938 भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव था , जहाँ कांग्रेस में मज़बूत हो चुकी दो विचारधाराओं ने एक दूसरे को प्रभावित करने का प्रयास किया। यह केवल गाँधी जी और सुभाष के बीच का मुद्दा नहीं था बल्कि देश तथा कांग्रेस आगे जाकर किस नीतियों पर चलेगी इसका एक निर्णय था .

Article Powered by TOPICFLIX

हरिपुरा अधिवेशन कब हुआ था ?

1938 में हरिपुरा अधिवेशन हुआ था। तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में समाजवाद और साम्यवाद के उदय ने इस अधिवेशन को प्रभावित किया।

हरिपुरा अधिवेशन में अध्यक्ष कौन थे ?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस इस अधिवेशन में अध्यक्ष के रूप में चुने गए थे।

हरिपुरा अधिवेशन कांग्रेस का कौनसा अधिवेशन था ?

यह 51वाँ अधिवेशन था।

हरिपुरा किस राज्य में स्थित है ?

विठ्ठल नगर, गुजरात राज्य में स्थित है।

हरिपुरा अधिवेशन के समय गाँधी जी कहाँ थे ?

कांग्रेस में साम्यवादी विचारधारा प्रबल हो रही थी और सुभाष व जवाहर लाल नेहरू समाजवाद से प्रभावित थे। इस समय दोनों कांग्रेस को आगे ले जा रहे थे परन्तु महात्मा गाँधी जी हरिपुरा अधिवेशन के समय सक्रिय राजनीति से बाहर थे।

गाँधी जी सक्रिय राजनीति से क्यों दूर हो आ गये थे ?

इस समय गाँधी जी हरिजनो के उन्नयन के लिए कार्य कर रहे थे। इस से पहले गाँधी जी समाजवाद से मत-भिन्नता, तबीयत ख़राब होने के कारण सक्रिय राजनीति से बहार जरूर थे परन्तु लगातार वो देश की राजनीति पर ध्यान दे रहे थे।

हरिपुरा अधिवेशन में क्या क्या प्रस्ताव पास किये गए थे ?

हरिपुरा अधिवेशन में मुख्य प्रस्ताव ब्रिटेन से भारत को आज़ादी देने के लिए 6 महिने का समय देना और उसके बाद ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह करना था। यह प्रस्ताव गाँधी जी की अहिंसा की नीति के विरुद्ध था इसलिए गाँधी जी इस से सहमत नहीं हुए।

सुभाष की अध्यक्षता का किसने विरोध किया था ?

कांग्रेस के दक्षिणपंथी सुभाष के कठोर वामपंथी विचारधारा से काफी मतभेद रखते थे क्योंकि इसमें गाँधीवादी अहिंसात्मक शैली न थी। इस क्रम में 1938 में हरिपुरा अधिवेशन के पूर्व सरदार वल्लभ भाई पटेल में सुभाष का विरोध किया था। परन्तु गाँधीजी स्वयं सुभाष और जवाहर से प्रभावित थे इसलिए गाँधी जी ने अध्यक्ष पद के लिए सुभाष का नाम पर मोहर लगा दी।

हरिपुरा अधिवेशन, 1938
, haripura adhiveshan
गांधी जी और सुभाष

गांधी जी और सुभाष के बीच मत-भिन्नता कैसे आ गयी ?

गांधी जी कांग्रेस में वामपंथी विचारधारा के हिंसात्मक विचार से सहमत नहीं थे। वही जवाहर लाल नेहरू और सुभाष लगातार कॉंग्रेस में वामपंथी विचारो को प्रसारित कर रहे थे। महात्मा गाँधी शुरुआत में जवाहर और सुभाष के विचारों और ऊर्जा से प्रभावित थे परन्तु कुछ बातो से गाँधी जी असहज भी थे :

  • सुभाष “दुश्मन का दुश्मन को दोस्त” मानते थे परन्तु गाँधी जी इससे सहमत न थे
  • सुभाष ने हरिपुरा अधिवेशन के पहले भाषण में स्टालिनवादी साम्यवाद और बेनिटो मुसोलिनी के फासिस्ट विचारधारा की प्रशंसा की। निश्चित रूप से फासिस्ट विचारों से गाँधी जी काफी असहज हो उठे क्योंकी ये देश के लिए एक अलोकतांत्रिक व्यवस्था बनाने का समर्थन जैसा था। गाँधी जी इस कारण काफी अलग हो गए थे।
  • हरिपुरा अधिवेशन में सुभाष का ब्रिटिश सरकार को 6 माह का समय देना और उसके बाद विद्रोह का प्रस्ताव पर भी गाँधी जी असहमत थे क्योंकि वे हिंसात्मक तरीको को अनैतिक मानते थे जबकि सुभाष इससे असहमत न थे।
  • 1938 में सुभाष ने राष्ट्रीय नियोजन समिति का गठन किया जिसका काम भारत में विकास की योजना की रूप रेखा बनाना था। परन्तु गाँधी जी जहाँ औद्योगीकरण से ज्यादा ग्राम व कुटीर अर्थव्यवस्था चाहते थे इसलिए दोनों में विकास की रूपरेखा कैसी हो पर मतभेद पैदा हो गए
  • सुभाष और गाँधी जी के भारत को आज़ादी दिलाने के तरीके अलग थे

लेकिन फिर भी गाँधी जी ने 1938 में सुभाष चंद्र बोस के कई कामों से प्रभावित होकर हरिपुरा अधिवेशन की अध्यक्षता सुभाष को ही सौंपी

अंततः कौन हरिपुरा अधिवेशन का अध्यक्ष बना ?

सुभाष के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद को तुरंत अध्यक्ष बना दिया गया।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार सुभाष के हरिपुरा अधिवेशन की कार्यशैली और स्टालिन व मुसोलिनी के प्रति झुकाव तथा आज़ादी दिलाने के कठोर शैली के कारण ही गाँधी जी लगातार दूर हो चले थे।

गाँधीजी और सुभाष के बीच मतभेद वैचारिक थे क्योकि सुभाष और गांधीजी ने कभी एक दूसरे को खुलकर आलोचना नहीं की। फिर भी दोनों के मतभेदों से कांग्रेस वामपंथी और दक्षिणपंथी ग्रुप में बंट गयी। और यही मतभेद त्रिपुरी अधिवेशन में दिखाई दिए।

त्रिपुरी अधिवेशन कांग्रेस में संकट का समय था। इसे समझने और पढ़ने यहाँ क्लिक करे


यह आर्टिकल आधिकारिक स्त्रोत जैसे प्रमाणित पुस्तके, विशेषज्ञ नोट्स आदि से बनाया गया है। निश्चित रूप से यह सिविल सेवा परीक्षाओ और अन्य परीक्षाओ के लिए उपयोगी है।

ankita mehra

About the Author

Ankita is a German scholar and loves to write. Users can follow Ankita on Instagram ankita mehra instagram


Share and follow

अगर यह आर्टिकल आपको उपयोगी लगा तो इसे शेयर करना न भूले और नीचे दिए लिंक पर फॉलो भी करे



Share the post(Hidden)

***