bharat chodo andolan
इतिहास भारत

भारत छोड़ो आंदोलन के कारण [Bharat Chodo Andolan]

क्रिप्स मिशन के वापस लौटने के उपरांत गांधीजी ने एक प्रस्ताव तैयार किया जिसमें अंग्रेजों से तुरंत भारत छोड़ने तथा जापानी आक्रमण होने के भय से भारतीयों से अहिंसक असहयोग (भारत छोड़ो आंदोलन) का आव्हान किया था। कांग्रेस कार्यसमिति ने वर्धा की अपनी बैठक, 14 जुलाई 1942, में संघर्ष के गांधीवादी प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति दे दी।

भारत छोड़ो आंदोलन (Bharat Chodo Andolan), भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का एक महत्वपूर्ण और अभिन्न हिस्सा था, इसके निम्न कारण थे:

भारत छोड़ो आंदोलन के कारण [Bharat Chodo Andolan]
महात्मा गांधी (Colorized by topicflix.com)
  • संवैधानिक गतिरोध को हल करने में क्रिप्स मिशन की असफलता ने संवैधानिक विकास के मुद्दे पर ब्रिटेन के अपरिवर्तित रुख को उजागर कर दिया तथा यह बात स्पष्ट हो गई थी कि भारतीयों की ज्यादा समय तक चुप्पी, उनके भविष्य को ब्रिटेन के हाथों में सौंपने के समान होगी। इससे अंग्रेजों को भारतीय से विचार विमर्श किए बिना उनके भविष्य निर्धारण का आधार मिल जाएगा
  • मूल्य में बेतहाशा वृद्धि तथा चावल, नमक इत्यादि आवश्यक वस्तु के अभाव के कारण सरकार के विरुद्ध जनता में तीव्र असंतोष था।
  • सरकार ने बंगाल और उड़ीसा के नावों को, जापानियों द्वारा दुरुपयोग किए जाने के भय से, जप्त कर लिया था। जिससे बंगाल और उड़ीसा के स्थानीय लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा था।
  • जापानी आक्रमण के भय से, ब्रिटेन ने असम बंगाल एवं उड़ीसा में दमनकारी एवं भेदभाव पूर्ण भू नीतियों का सहारा लेना शुरू कर दिया था।
  • दक्षिण पूर्व एशिया में ब्रिटेन की पराजय तथा शक्तिशाली ब्रिटेन के पतन के समाचार ने भारतीयों में विद्रोह का विश्वास की भावना को प्रबल कर दिया। अंग्रेजी शासन पर से स्थाई तौर से लोगों की आस्था कम होने लगी तथा लोग डाकघरों एवं बैंकों से अपना रुपया वापस निकालने लगे।
  • बर्मा (वर्तमान म्यांमार )और मलाया (वर्तमान मलेशिया ) को खाली करवाने के ब्रिटिश सरकार के तौर तरीकों से भारतीयों में काफी असंतोष फैला। सरकार ने यूरोपियों की बस्तियां खाली करवा दी गयी। जिससे यह अंदेशा हो गया की भारत अब सुरक्षित जगह नहीं है।
  • स्थानीय निवासियों को उनके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया गया। जिससे बहुत नाराजगी फैली। शरणार्थियों को सुरक्षित जगह बसने में भी भेदभाव किया गया। शरणार्थियों की बस्ती में दो तरह की सड़के बनाई गई। पहली सड़क भारतीय शरणार्थियों के लिए थी जो काली सड़क थी तथा यूरोपियों के लिए के लिए एक सफेद सड़क का निर्माण किया गया। ब्रिटिश सरकार की इन हरकतों से लोगो के मन में अंग्रेजों के प्रति प्रतिष्ठा को गहरा आघात पंहुचा तथा उनकी स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने की मनोवृति उजागर हो गई।
  • संभवतया उस समय फैली निराशा के कारण जापानी आक्रमण का जनता द्वारा कोई प्रतिरोध नहीं किये जाने की आशंका थी। इससे राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं ने स्वयं संघर्ष प्रारंभ करना जरूरी लगने लगा।

इस क्रम में ग्वालियर टैंक से 8 अगस्त, 1942 बम्बई (वर्तमान मुंबई ) को आयोजित बैठक में अंग्रेजों भारत छोड़ो का एक प्रस्ताव पारित किया गया।

यह आर्टिकल आधिकारिक स्त्रोत जैसे प्रमाणित पुस्तके, विशेषज्ञ नोट्स आदि से बनाया गया है। निश्चित रूप से यह सिविल सेवा परीक्षाओ और अन्य परीक्षाओ के लिए उपयोगी है।

ankita mehra

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Ankita is a German scholar and loves to write. Users can follow Ankita on Instagram ankita mehra instagram

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