1991 का भुगतान संतुलन का संकट (Balance of Payment Crisis) भारत के लिए एक बड़ा खतरा था। भारत में कुछ दिनों का ही विदेशी रिज़र्व बचा था। ऐसे में अर्थव्यवस्था एक ऐसे मोड़ पर आ गयी थी जहाँ भारत को नए प्रयोग करने पड़े और अन्तराष्ट्रीय प्रणालियों से तालमेल बैठना पड़ा।
ऐसा आर्थिक संकट भारत के सामने नया था जो कभी भी सामने नहीं आया था। लेकिन भारत ने न केवल इस संकट को बढ़ने से रोका बल्कि आने वाले भविष्य के लिए जो आर्थिक सुधार किये वो भारत को एक महा आर्थिक शक्ति बनाने वाले थे।
- भुगतान संकट के कारण क्या थे ?
- Balance of Payment Crisis,1991 से पहले की परिस्थितियाँ ?
- क्या धीमी विकास दर 1991 के संकट के लिए जिम्मेदार थी ?
- भुगतान संतुलन संकट के तत्कालीन समय क्या स्थिति थी ?
- Balance of Payment Crisis में प्रधानमंत्री कौन थे ?
- Balance of Payment Crisis में वित्तमंत्री कौन थे ?
- Balance of Payment Crisis में RBI के गवर्नर कौन थे ?
- Balance of Payment Crisis, 1991 से उभरने में नरसिम्हा राव सरकार और डॉ. मनमोहन सिंह का क्या योगदान रहा ?
- About the Author
भुगतान संकट के कारण क्या थे ?
भुगतान संकट (Balance of Payment Crisis) के मूल कारण घरेलु और अन्तराष्ट्रीय थे। 1980 के दशक तक भारत एक लगभग बंद अर्थव्यवस्था की तरह था जहा निजी क्षेत्रो को सीमित रखा हुआ था। लाइसेंस और इंस्पेक्टर राज ने एकाधिकारों को रोका हुआ था और सरकार घाटे के बजट से अर्थव्यवस्था को संभाल रही थी। फिर भी इसके निम्न कारण थे :
सोवियत यूनियन का टूटना :
1980 तक USSR भारत का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार था परन्तु सोवियत संघ ने ग्लोनास्त और परिस्त्रैका की नीति अपना कर अपनी अर्थव्यवस्था को खोल दिया जिससे सोवियत संघ में विखंडन की शुरुआत हुई। पूर्वी युरोपियन देश सोवियत संघ से बाहर हो गए और इसका प्रभाव भारत के निर्यात पर पड़ा।
1980 तक भारत का सोवियत संघ को निर्यात का हिस्सा लगभग 22% था (कुल निर्यात का ) जो केवल 1990 तक आते आते 11% ही रह गया। इससे भारत को काफी नुकसान उठाना पड़ा।
खाड़ी युद्ध ( कुवैत-इराक संकट ) :
खाड़ी संकट 1990 में एक बड़ा अंतराष्ट्रीय संकट बन कर आया जिसके कारण न केवल क्रूड आयल के दाम काफी बढ़ गए बल्कि विश्व की महा शक्तियां अमेरिका और सोवियत आमने सामने हो गए। खाड़ी संकट की शुरुआत 1990 में इराक के कुवैत में घुसने व आक्रमण से शुरू हुई।
उस समय भारत मुख्य रूप से क्रूड आयल इराक और कुवैत से आयात किया करता था परन्तु कुवैत-इराक संकट ने भारत का भुगतान संतुलन को बेहद ख़राब कर दिया था।
1990-91 के आर्थिक समीक्षा के मुताबिक भारत का क्रूड आयल पर खर्चा लगभग 50% बढ़ गया था। इसके बाद भारत में महंगाई भी बढ़ गयी थी।
राजनैतिक संकट :
नवंबर 1989 से मई 1991 तक की अवधि भारत में राजनीतिक अनिश्चितता और अस्थिरता थी। वास्तव में, डेढ़ साल की अवधि के भीतर तीन गठबंधन सरकारें और तीन प्रधान मंत्री बन चुके थे। इससे भुगतान संतुलन संकट से निपटने में देरी हुई, और निवेशकों के विश्वास में भी कमी आई।
बढ़ते चालू खाते के घाटे और आरक्षित घाटे ने निवेशकों के कम विश्वास में योगदान दिया, जो राजनीतिक अनिश्चितता से और कमजोर हो गया। यह क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा भारत की क्रेडिट रेटिंग के डाउनग्रेड से और बढ़ गया था। मार्च 1991 तक, इंटरनेशनल क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों स्टैंडर्ड एंड पूअर्स और मूडीज ने भारत की दीर्घकालिक विदेशी ऋण रेटिंग को निवेश ग्रेड के नीचे कर दिया।
निवेशकों के विश्वास की हानि के कारण, वाणिज्यिक बैंक वित्तपोषण प्राप्त करना कठिन हो गया, और अल्पकालिक बाहरी ऋण का बहिर्प्रवाह शुरू हो गया, क्योंकि लेनदार ऋणों को रोल ओवर करने के लिए अनिच्छुक हो गए ।
इसके अलावा अन्य मदों (Non-oil Imports) के आयत बिल बड़े गए और इसी दौरान बाहरी उधारी (external commercial borrowings) में काफी उछाल आया जिस से अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ गया। खाड़ी युद्ध के कारण प्रवासी धन प्रेषण (loss of workers’ remittances) भी काफी कम हो गया और चालू खाता में काफी घाटा (CAD) हुआ। ये लगातार 1990 तक बढ़ता ही चला गया।
Balance of Payment Crisis,1991 से पहले की परिस्थितियाँ ?
1979 के बाद से, दूसरा तेल संकट (second oil shock), कृषि सब्सिडी और खपत आधारित विकास ने राजकोषीय घाटे को बढ़ा दिया था। 1980 के दशक के मध्य में यह और बढ़ गया क्योंकि रक्षा व्यय में काफी वृद्धि हुई थी और प्रत्यक्ष करों को उत्तरोत्तर कम किया गया था।
इसका परिणाम यह हुआ कि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटा 1990-91 में बढ़कर 9.4 प्रतिशत हो गया, जबकि 1980 के दशक की पहली छमाही में यह 6.3 प्रतिशत था।
1991 के संकट की शुरुआत से पहले, दो तात्कालिक बाहरी झटकों (Shocks) ने सीएडी (CAD -Current Account Deficit ) को बढ़ाने में योगदान दिया।
सबसे पहले, 1990 में कुवैत पर इराक के आक्रमण ने भारत को वैश्विक तेल कीमतों में अचानक बदलाव से प्रभाव पड़ा। इससे उस क्षेत्र में काम कर रहे भारतीयों की वापसी और पुनर्वास तेज हो गया, जिससे प्रेषण (Remittance) के प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
1990-91 में पेट्रोलियम आयात बिल 50.0 प्रतिशत से बढ़कर 6.0 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। सितंबर 1990 तक, अनिवासी भारतीयों (NRIs) की जमाराशियों का शुद्ध अन्तर्प्रवाह नकारात्मक हो गया था।
दूसरा झटका भारत के निर्यात बाजारों में धीमी आर्थिक वृद्धि था। अमेरिका को निर्यात 1988 में 4.1 प्रतिशत से गिरकर 1991 में (-) 0.2 प्रतिशत हो गया। एक अन्य प्रमुख निर्यात बाजार ,सोवियत संघ में स्थिति तेल के झटके के कारण खराब हो गई।
विश्व विकास दर1988 में 4.5 प्रतिशत से घटकर 1991 में 2.2 प्रतिशत हो गयी। नतीजतन, 1990-91 के दौरान भारत की निर्यात वृद्धि केवल 4.0 प्रतिशत थी।
क्या धीमी विकास दर 1991 के संकट के लिए जिम्मेदार थी ?
भारत आज़ादी के बाद से लगभग पुरे दक्षिण एशिया के देशो की तुलना में बेहद अच्छी गति से आगे बढ़ रहा था। आज़ादी के बाद भारत ने पाकिस्तान और चीन से युद्ध झेले जिसके कारण तत्कालीन पंचवर्षीय योजनाओं में बाधा आयी। लेकिन लगातार गरीबी को हटाने और समावेशी विकास के लिए काम किया जा रहा था।
फिर भी घाटे में सार्वजानिक उपक्रमों को चलाना, निजी क्षेत्रों को सीमित रखना और लाइसेंसी राज ने अर्थव्यवस्था को सीमित गति ही प्रदान की।
1980 के दशक तक भारत हिन्दू विकास दर ( 3%-5%) से आगे बढ़ रहा था। इसके कारण भारत इतना विदेशी रिज़र्व्स जमा नहीं कर पाया की 1991 के इराक -कुवैत संकट से उपजे भुगतान संतुलन को झेल पाए।
भुगतान संतुलन संकट के तत्कालीन समय क्या स्थिति थी ?
इस समय अंतराष्ट्रीय परिस्थितियाँ भारत के अनुकूल नहीं थी। साथ में भारतीय राजनीति में भी उथल पुथल थी। इन परिस्थितियों में 21 मई, 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी की हत्या हो जाने से स्थिति और भी संकटमय हो गयी थी।
आर्थिक मोर्चे पर भी भारत के पास मई, 1991 को केवल लगभग 1.1 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार बचा था और भारत पर कर्जा लगभग 70 बिलियन डॉलर था। इस सभी कारणों से भारत आने वाले दिनों में अपनी ऋण देयताओं को भी निभाना मुश्किल था।
Balance of Payment Crisis में प्रधानमंत्री कौन थे ?
पी. वी. नरसिम्हा राव
Balance of Payment Crisis में वित्तमंत्री कौन थे ?
डॉ. मनमोहन सिंह
Balance of Payment Crisis में RBI के गवर्नर कौन थे ?
एस वेंकटरमण
Balance of Payment Crisis, 1991 से उभरने में नरसिम्हा राव सरकार और डॉ. मनमोहन सिंह का क्या योगदान रहा ?
जुलाई, 1991 के पहले सप्ताह में कांग्रेस की सरकार बनते ही इस संकट पर तुरंत निर्णय लिए गए। इसमें निम्न निर्णय शमिल है :
RBI के ज़रिये 25 टन सोना बैंक ऑफ़ इंग्लैंड में जमा करवाना ताकि जरुरत पड़ने पर तुरंत ऋण की व्यवस्था हो सके। इस सोने के बदले भारत को उन दिनों लगभग 200 मिलियन डॉलर का ऋण प्राप्त हो जाता। परन्तु इस ऋण की जरुरत नहीं पड़ी क्योंकि देश की स्थिति में लगातार सुधार आया।
रुपए का अवमूल्यन : विदेशी मुद्रा भंडार की गंभीर परिस्थिति को देखते हुए डॉ. मनमोहन सिंह ने मुद्रा को अवमूल्यन का फैसला किया। इस प्रकार दो बार तेजी से अवमूल्यन किया गया तीन दिनों में ही भारतीय रुपया लगभग 21% गिर गया।
इसके बाद भारत ने स्वतंत्र या परिवर्तनशील विनिमय मुद्रा प्रणाली ( floating exchange rate )को अपना लिया।
डॉ मनमोहन सिंह और RBIके गवर्नर एस वेंकटरमन ने इसे अवमूल्यन नहीं बल्कि रूपए का अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं के साथ सामंजस्य (adjustment ) कहा क्योंकि अवमूल्यन तो स्थिर विनिमय दर वाली मुद्राओं का होता है।
सरकार और रिजर्व बैंक ने आधिकारिक स्तर पर, गहरी राजनीतिक अनिश्चितताओं के बीच, भारत के आर्थिक इतिहास में पहले कभी नहीं देखे गए ऐसे संकट के सामने संकल्प के साथ सुधारात्मक कदम उठाए।
बाद में सरकार ने देश में अपनी बीओपी (BOP -Balance of Payment) स्थिति का प्रबंधन करने के अलावा, स्थायी व्यापक आर्थिक और वित्तीय क्षेत्र के सुधारों की एक श्रृंखला शुरू की।
इन्ही सुधारो के कारण भारत न केवल भविष्य में तीव्र विकास कर पाया बल्कि शानदार विदेशी रिज़र्व और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक महा-आर्थिक शक्ति के रूप में उभर पाया। तत्कालीन नरसिम्हा सरकार, वित्तमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, RBI के गवर्नर एस. वेंकटरमन ने भारत को इस संकट से शानदार तरीके से बाहर निकाल लिया था।
इसके बाद भारत में महत्वपूर्ण आर्थिक बदलावों का दौर शुरू हुआ और उदारीकरण, नीजिकरण, वैश्वीकरण (LPG POLICY) की नीतियाँ अपने गयी।
यह आर्टिकल आधिकारिक स्त्रोत जैसे प्रमाणित पुस्तके, विशेषज्ञ नोट्स आदि से बनाया गया है। निश्चित रूप से यह सिविल सेवा परीक्षाओ और अन्य परीक्षाओ के लिए उपयोगी है।
About the Author
Ankita is a German scholar and loves to write. Users can follow Ankita on Instagram
नर्मदा नदी: सामान्य अध्ययन के लिए मुख्य बिंदु
नर्मदा नदी, जिसे “जीवन की नदी” या “मध्य प्रदेश की जीवन रेखा” के रूप में…
How does a country get membership of WTO?
How a nation or customs zone joins the World Trade Organisation (WTO) is a frequently…
द्वितीय चीन-जापानी युद्ध (Second Sino-Japanese War), 1937
दूसरा चीन-जापानी युद्ध (Sino-Japanese War) जुलाई 1937 में मार्को पोलो ब्रिज घटना के साथ शुरू…
What did Jeremy Bentham think about the theory of Natural Rights?
Jeremy Bentham, because of his utilitarian theory, did not believe in the theory of natural rights…
Neglected tropical diseases (NTDs) उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग [UPSC GS]
उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (Neglected tropical diseases-NTDs), जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में प्रचलित हैं,…
विश्व के महत्वपूर्ण पठार (Important Plateaus of the World)
संपूर्ण भूपटल पर 33% पठार स्थित है। पठार एक समतल, मैदानी समप्राय भौतिक संरचना है…