मुजफ्फरपुर बमकांड क्रांतिकारी भारतीय राष्ट्रिय आंदोलन का एक अहम अध्याय है की कैसे कम उम्र के युवा भारत की आज़ादी के सपने देख रहे थे और कैसे न कैसे आज़ादी पाने का प्रयास कर रहे थे। इस घटना में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी दोनों काफी युवा थे। जिसमे खुदीराम बोस 18 वर्ष से कम थे। खुदीराम बोस संभवतया औपनिवेशिक भारत के पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हे 18 वर्ष से कम होने के बावजूद भी फांसी की सजा दे दी गयी थी।
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मुजफ्फरपुर बमकांड का कारण
26 अगस्त, 1907 को अरविंद घोष पर वंदेमातरम के सिलसिले में चले मुकदमे के दौरान अदालत के भीतर और बाहर जो गड़बड़ी हुई थी, उस के सिलसिले में गिरफ्तार सुशीलकुमार सेन को 15 बेंत मारने की सजा दी थी। क्रांतिकारियों के बयान के अनुसार इन्हीं कारणों से किंग्सफोर्ड को खत्म करने का फैसला किया गया था।
30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने जिला जज डी. एच. किंग्सफोर्ड को खत्म करने के लिए बम फेंका। किंग्सफोर्ड ने कलकत्ता के चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट की हैसियत से क्रांतिकारी अख़बार और पत्र युगांतर, वंदे मातरम, संध्या, और नवशक्ति से संबंधित लोगों को सजाएं दी थी।
किंग्सफोर्ड को मारने की योजना और उसका खुलासा
किंग्सफोर्ड जब कलकत्ता में था तभी उसी को मारने का प्रयत्न किया गया था। इसके लिए क्रांतिकारियों ने प्लानिंग भी की थी। योजना अनुसार एक मोटी पुस्तक के पृष्ठों को काटकर बीच में बम रखकर उसे किंग्सफोर्ड के पास भेज दिया गया था। उसे खोलते ही वह बम फट जाता और किंग्सफोर्ड खत्म हो जाता किंतु पार्सल मिलने पर उसने सोचा कि एक मित्र द्वारा उधार ली गई कानून की पुस्तक वापस आई है इसलिए उसे बिना खोले ही अपनी अन्य पुस्तकों के साथ रख दिया।
फिर मुजफ्फरपुर से किंग्सफोर्ड का तबादला हो गया तो वह पुस्तक भी अन्य पुस्तकों के साथ चली गई। यह योजना तब पता चली जब क्रन्तिकारी पकडे गए और उसको खोलने का सवाल तब आया जब बाद में चले मुकदमे के दौरान क्रांतिकारियों ने इसका उल्लेख किया।
मुजफ्फरपुर बमकांड घटना
किंग्सफोर्ड को दंड देने के लिए खुदराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को मुजफ्फरपुर भेजा गया था। उनके भेजे जाने का समाचार 20 अप्रैल को पुलिस को मिल चुका था। मुजफ्फरपुर जिले के पुलिस को सूचना दे दी गई थी और किंगफोर्ड की सुरक्षा के लिए पुलिस बल की तैनाती कर दी गई थी।
किंगफोर्ड रोज़ जिस क्लब में शाम को जाया करता था उसी के पास पुलिस के दो सिपाहियों की ड्यूटी लगा दी गई थी। लेकिन बोस और चाकी चौकन्ने थे। बोस और चाकी ने किंग्सफोर्ड की घोड़ागाड़ी की तरह दिखने वाली गाड़ी को क्लब से लौटते देख उस पर बम फेंक दिया। दुर्भाग्य यह रहा कि उस गाड़ी में राष्ट्रीय आंदोलन से हमदर्दी रखने वाले मिस्टर केनेडी की पत्नी और पुत्री थी। पुत्री तुरंत मारी गई और पत्नी ने 28 घंटे बाद दम तोड़ दिया। किंग्सफोर्ड बच गया था।
खुदीराम बोस को फांसी
उस समय खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी वहां से भाग निकले लेकिन पुलिस के जाल से वे बच नहीं सके। खुदीराम बोस को 1 मई को वाहिनी स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 11 मई, 1908 को फांसी दे दी गई।
प्रफुल्ल चाकी: पुलिस के हाथ न आना
2 मई को, प्रफुल्ल चाकी को समस्तीपुर स्टेशन पर वीरभूमि जिला पुलिस के सब इंस्पेक्टर ने पहचान लिया उसने मोकामा स्टेशन पर दूसरे पुलिस अफसरों के साथ मिलकर उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की। गिरफ्तारी से बचने के लिए प्रफुल्ल चाकी ने अपनी पिस्तौल की गोली से स्वयं को मार ली। लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं आये।
18 मई, 1908 को कलकत्ता के अलीपुर अदालत में 31 आदमियों को मुजफ्फरपुर बम कांड में जिला मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। उन पर गैरकानूनी ढंग से हथियार रखने व सरकार को पलटने की साजिश का अभियोग में सजा सुनाई गई। 19 अगस्त, 1908 को 30 आदमियों को सेशन जज को सौप दिया गया और इस मुकदमे को एक दूसरे मुकदमे से इसे जोड़ दिया। जो अलीपुर षड़यंत्र या मानिकतल्ला षड़यंत्र के नाम से जाना गया।
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यह आर्टिकल आधिकारिक स्त्रोत जैसे प्रमाणित पुस्तके, विशेषज्ञ नोट्स आदि से बनाया गया है। निश्चित रूप से यह सिविल सेवा परीक्षाओ और अन्य परीक्षाओ के लिए उपयोगी है।
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Ankita is a German scholar, Civil Services aspirant and loves to write. Users can follow Ankita on Instagram