आग्सबर्ग की संधि (Treaty of Augsburg) जर्मनी और यूरोप में धार्मिक युद्धों का विराम था जो मार्टिन लूथर के ईसाई धर्म में क्रन्तिकारी सुधारों की मांग की पराकाष्ठा थी। मार्टिन लूथर जो स्वयं एक पादरी था लेकिन उसने ईसाई धर्म में उस समय चल रहे आडम्बरों को अपने तर्कों से काट दिया था जिस कारण एक वैचारिक द्वन्द शुरू हुआ। यह द्वन्द आग्सवर्ग की संधि पर विराम लेता है।
जर्मनी में लूथर के विचारो से प्रोटेस्टेंट वर्ग बन गया था जो ईसा को मानते हुए ईसाई धर्म को आधुनिक विचरो के अनुरूप उसमे तार्किक सुधारो की बाटे किया करते थे। प्रोटेस्टेंट विचार पुरे यूरोप में फ़ैल गया और उसे कई राजा भी समर्थन देने लगे। इसमें कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट विचारो में हिंसात्मक प्रतिरोध शुरू हो गया और धार्मिक युद्धों की शुरुआत हुई।
चार्ल्स पंचम का समर्पण
चार्ल्स पंचम ने जीवन भर प्रोटेस्टेंट से विरोध किया लेकिन अंततः वह थक गया और उसने जर्मनी में एक सभा का आयोजन किया जिसमे प्रोटेस्टेंट नेताओ और राजाओ को बुलाया ताकि एक सहमति बन सके। लेकिन इसमें प्रोटेस्टेंट की ओर से एक सुधर पेश किया गया जिसमे लूथर के विचार शामिल थे और कैथोलिक चर्च के अधिकारों में कमी करनी थी।
इस दस्तावेज को आग्सवर्ग की स्वीकृति कहा गया। लेकिन चार्ल्स पंचम नहीं माना और उसने फिर से प्रोटेस्टेंटो का दमन करना शुरू कर दिया। इसके फलस्वरूप प्रोटेस्टेंट समर्थक राजाओ ने 1531 ईस्वी में प्रतिरोध में एक ग्रुप बनाया जिसे स्मालकाल्डिक लीग (Schmalkaldic League) कहते है।
स्मालकाल्डिक लीग चार्ल्स पंचम का विरोध कर रह था और इस कारण दोनों आमने सामने हो गए, जो आगे चल आकर युद्ध में बदल गया। इसे स्मालकाल्डिक का युद्ध कहते है जिसमे चार्ल्स पंचम ने समर्पण कर दिया।
प्रोटेस्टेंट से सहयोग की नीति किसने अपनाई
चार्ल्स पंचम की स्मालकाल्डिक युद्ध में समर्पण के बाद उसने राज्य गद्दी को छोड़ दिया और उसका स्थान 1555 ईस्वी में फर्डिनेण्ड ने लिया। फर्डिनेण्ड ने प्रोटेस्टेंट से समझौते की नीति को बढ़ावा दिया।
आग्सबर्ग की संधि
1555 ईस्वी में फर्डिनेण्ड ने प्रोटेस्टेंट को फिर से आग्सबर्ग में बुलाया और वहां आग्सबर्ग की संधि हुई जो जर्मनी में धार्मिक युद्धों को विराम देने और प्रोटेस्टेंट समझौते के लिए थी।1555 ईस्वी में आग्सबर्ग में जर्मन शासको की सभा, जिसे डाइट (Diet) कहा जाता था, वह इस संधि पर हस्ताक्षर हुए जिसमे निम्न बाते शामिल थी :
- केवल और हर शासक को राज्य और प्रजा का धर्म चुनने की आज़ादी दी गयी
- लूथरवाद के अलावा किसी विचार आया वाद को स्वीकृति नहीं मिली
- जो जमीने प्रोटेस्टेंटो ने कैथोलिक चर्च से हथिया ली थी वो वापिस करनी होगी
- कैथोलिक राज्यों में रहने वाले प्रोटेस्टेंट लोगो को अपना धर्म और विश्वास छोड़ने पर मजबूर नहीं किया जायेगा
- प्रोटेस्टेंट बनने पर कैथोलिक पादरी को अपना पद व अधिकार छोड़ना होगा
आग्सबर्ग की संधि की कमियां
आग्सबर्ग की संधि में प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक विचारो ने आपस सहमति जरूर बना ली लेकिन इसमें काफी सुधर नहीं किये गए जो लूथर के विचारो में शामिल थे। ये निम्न है :
- जनता को धार्मिक स्वतंत्रता नहीं दी गयी। आग्सबर्ग की संधि में केवल राजा ही जनता का धर्म और राज्य का धर्म घोषित कर सकता था। जनता का धर्म राजा की पसंद पर निर्भर था। इस कारण इन सिद्धांतो को लैटिन भाषा में “सुजूस रेगियो एजुस रेलिजियो” बोला गया जिसका मतलब “जैसा राजा वैसी प्रजा” था।
- प्रोटेस्टेंट पर कैथोलिक जमीने वापिस करने का प्रावधान था लेकिन कैथोलिक द्वारा प्रोटेस्टेंटो की सम्पति पर यह मौन रहा
- जर्मनी में लूथरवाद ने कई सुधार के विचारो को जन्म दिया जो कई शाखाओं में अल्पसंख्यक रूप से बंटे हुए थे। इस संधि में केवल लूथरवादियो को संरक्षण के लिए बोला गया जबकि जो लोग लूथर से अलग सुधारों की मांग कर रहे थे उन्हें राजा आसानी से दमन कर सकता था। इसमें कई आधुनिक सुधारवादियों के लिए कोई जगह नहीं थी। जैसे जिंवग्लीवादी ओर कैल्विनवादी को आसानी से राजाओ ने दमन करना शुरू किया और फिर से धार्मिक युद्ध शुरू हुआ।
आग्सबर्ग की संधि की समीक्षा
आग्सबर्ग की संधि ने काफी हद तक धार्मिक संघर्षो को विराम दे दिया था लेकिन फिर भी यह संधि पूरी तरह सही नहीं थी। इसमें काफी त्रुटियाँ थी। आग्सबर्ग की संधि में प्रजा से धार्मिक आज़ादी केवल राजा को सौंपना ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सकता था।
वही केवल लूथरवाद को मान्यता पक्षपात और गलत थी क्योकि जिंवग्लीवादी ओर कैल्विनवादीयो के अनुयायियों को अभी भी अधिकार नहीं मिले थे जिसके कारण वह बेहद असंतुष्ट थे।
सम्पति सम्बन्धी निर्णय भी गलत और अव्यवहारिक रहे। यह कैथोलिक अनुयायियों को ज्यादा अधिकार देता था।
इस सब के कारण जर्मनी में एक छोटे समय के लिए शांति आयी। लेकिन धार्मिक ईर्ष्या और कलह बना रहा इस कारण धीरे धीरे असंतोष बढ़ने से इसने युद्ध का रूप ले लिया। करीब 100 वर्ष बाद पुनः युद्ध के बाद वेस्टफेलिया की संधि पर धार्मिक युद्ध रुक पाए।
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