अफ्रीका का बँटवारा और अफ्रीका में उपनिवेशवाद (Colonialism in Africa) कहानी लालच और मानव भेदभाव को बताती है। जहाँ युरोपियन द्वारा अफ्रीका के संसाधनों की लूट के साथ साथ मानव व्यापर और रंगभेद की नीतियो ने पुरे विश्व इतिहास को प्रभावित किया था।
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यहाँ के अश्वेत लोग जो सुदूर जंगलो में रहा करते थे बिलकुल बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ थे। धीरे धीरे उपनिवेश की दौड़ में अफ्रीका युरोपियन प्रतिस्पर्धा का स्थल बन गया। जिसके कारण कई युरोपियन देशों ने आपस में युद्ध भी लड़े, लेकिन अंततः समझौता अफ्रीका के बँटवारे पर खत्म हुआ।
- प्रारम्भ में अफ्रीका को किस नाम से जानते थे
- गोल्ड कोस्ट, आइवरी कोस्ट, स्लेव कोस्ट
- अफ्रीका में सबसे पहले पहुंचने वाले लोग कौन थे ?
- श्वेतों का भार (White Men’s Burden) क्या था
- डेविड लिविंगस्टन कौन थे ?
- इंटरनेशनल कांगो एसोसिएशन की स्थापना
- अफ्रीका में उपनिवेश को लेकर प्रतिस्पर्धा
- अफ्रीका की समस्या पर 1885 ईस्वी का बर्लिन सम्मेलन
- कांगो फ्री स्टेट की स्थापना
- लियोपोल्ड-II और कांगो फ्री स्टेट का शोषण
प्रारम्भ में अफ्रीका को किस नाम से जानते थे
अफ्रीका पुरे विश्व से छुपा हुआ महाद्वीप था और इसके बारे में तरह तरह की कहानियाँ थी। इसे पहले अंध महाद्वीप (Dark Continent) बोला जाता था क्योंकि अफ्रीका भी अभी तक नहीं गया था। हालाँकि कुछ युरोपियन अफ्रीका के दक्षिण तटवर्ती क्षेत्रो में रह रहे थे।
गोल्ड कोस्ट, आइवरी कोस्ट, स्लेव कोस्ट
चूँकि कुछ युरोपियन लोग इसके तटों पर बसते थे लेकिन उन्हें अफ्रीका के बारे में ज्यादा नहीं पता था नाही उनमें से कुछ अफ्रीका के जंगलो में अंदर जाने की हिम्मत कर पाते थे। युरोपियन नाविकों ने इसके तटों का नाम रख दिया था जैसे गोल्ड कोस्ट, आइवरी कोस्ट, स्लेव कोस्ट आदि।
हर नाम वहाँ से चल रहे व्यापार की प्रकृति पर निर्भर करता था। जैसे गोल्ड कोस्ट से सोने का व्यापार, स्लेव कोस्ट से गुलामो का व्यापार आदि। इन तटवर्ती क्षेत्रो से जवान स्त्री पुरुषो को पकड़ कर उन्हें जानवरों की तरह समुद्री जहाजों में भर कर अमेरिका और यूरोप में गुलामी के लिए लाया जाता था और बोली लगा कर बेच दिया जाता था।
अफ्रीका में सबसे पहले पहुंचने वाले लोग कौन थे ?
सबसे पहले अफ्रीका में ईसाई धर्म प्रचारक पहुंचे। जो नए देश की खोज करने वाले भी थे। इनमे डेविड लिविंग्स्टन और हेनरी स्टैनली प्रमुख है।
श्वेतों का भार (White Men’s Burden) क्या था
मूल रूप से देखा जाये तो यूरोपीय सभ्यता विश्व में सबसे ज्यादा विकसित थी और इसी कारण वह एक गौरव पैदा हुआ जिसने युरोपियन लोगो में यह विश्वास भरा की श्वेत लोगो का काम बाकि विश्व के लोगो को सभ्य बनाने का है।
यह एक ऐसा दायित्व था जिसे स्वयं श्वेत लोगो ने अपने ऊपर ले लिया। इसे श्वेतों का भार (White Men’s Burden) कहा गया। यह एक स्वघोषित नैतिक जिम्मेदारी थी। यह युरोपियन लोगो का भ्रम भी था जिसमे वह स्वयं को विश्व गुरु मान रहे थे।
इस प्रेरणा के कारण युरोपियन लोग अन्य विश्व के भागो में ईसाई धर्म के प्रचार, शिक्षित करने, तकनीकी ज्ञान पहुंचने आदि मानव भलाई के कार्यो में लग गए लेकिन राजनीतिक रूप से इसमें उपनिवेशवाद छुपा होता था
डेविड लिविंगस्टन कौन थे ?
डेविड लिविंगस्टन एक ईसाई धर्मप्रचारक और डॉक्टर थे। जो वाकई में अफ्रीका लोगो की सेवा के उद्देश्य के लिए गए थे। डेविड लिविंगस्टन स्कॉटलैंड के रहने वाले थे इन्होने अपना जीवन मानव सेवा को समर्पित कर दिया था। साथ साथ इन्हे पर्यटन से नवीन क्षेत्रो में जाने की रूचि भी थी।
1841 ईस्वी में यह अफ्रीका के दक्षिणी-पूर्वी भाग में पहुंचे। लेकिन यह स्पष्ट है की डेविड लिविंगस्टन के अफ्रीका जाने के उद्देश्य न तो आर्थिक थे नाही राजनीतिक।
डेविड लिविंगस्टन जाम्बेजी नदी के किनारे किनारे विक्टोरिया जलप्रपात तक पहुंचने वाले पहले यूरोपीय भी थे। इससे अफ्रीका की भीतरी भागों से वह काफी परिचित हो गए। धीरे धीरे वह वहां के स्थानीय लोगो से काफी हिल मिल गया और उनकी मदद करने लगा।
डेविड लिविंगस्टन की हेनरी स्टैनली से मुलाकात
अफ्रीकी आदिवासियों की देखभाल में डेविड लिविंग्स्टन यूरोप को भूल गए लेकिन उनको लोगो ढूंढ रहे थे। इस क्रम में उनकी खोज के लिए अफ्रीका 1871 में हेनरी स्टैनली आया, जो एक पत्रकार थे। लेकिन कुछ ही दिनों बाद डेविड लिविंगस्टन की मृत्यु हो गयी।
हेनरी स्टैनली का चौंक जाना
हेनरी स्टैनली अफ्रीका के संसाधनों को देख कर काफी हैरान हो गया और जल्दी ही उसने अफ्रीका की अपार संभावनाओं लिया और उसने ही अफ्रीका को भुनाने की सोची। इसलिए वह यूरोप पहुंच कर ऐसे लोगो की तलाश में लग गया जो अफ्रीका में काम कर सके।
इसी क्रम में 1878 ईस्वी में स्टैनली की मुलाकात बेल्जियम के सम्राट लियोपोल्ड से हुई और अफ्रीका में उपनिवेश की शुरआत यही से होती है।
इंटरनेशनल कांगो एसोसिएशन की स्थापना
स्टेनली और लियोपोल्ड-II ने मिल कर इंटरनेशनल कांगो एसोसिएशन की स्थापना की। यह एक कंपनी थी जिसका बेल्जियम के लोगो या सरकार से कोई सम्बन्ध नहीं था।
लियोपोल्ड-II जानता था की जो अफ्रीका पहले पहुंचेगा उसी की जमीन होगी इसलिए कंपनी ने 1882 में अफ्रीका में कबीलाई सरदारों को लालच देकर कई तरह के कागजो और संधियों पर मुहर लगवा ली। और कबीलो ने कंपनी का झंडा लगाना भी शुरू कर दिया।
अफ्रीका में उपनिवेश को लेकर प्रतिस्पर्धा
इंटरनेशनल कांगो एसोसिएशन की हरकतों से सब बड़े बड़े यूरोपीय देश हरकत में आ गए। लेकिन प्रारंभ में किसी बड़े देश ने अफ्रीका ने रुचि नहीं दिखाई। उन दिनों अफ्रीका के कबीलो की जमीनों में कोई स्पष्ट सीमायें नहीं थी अतः जो जैसा चाहे उतनी जमीन पर कब्ज़ा जमा सकता था।
पुर्तगाल के पास अंगोला और मोजाम्बीक दो उपनिवेश थे लेकिन वह और अधिक क्षेत्रो पर कब्ज़ा चाहता था। इंग्लैंड ने शुरू में अफ्रीका में रूचि नहीं ली लेकिन उसने पुर्तगाल का समर्थन करना शुरू के दिया।
ठीक ऐसा ही जर्मनी का बिस्मार्क अफ्रीका को उपनिवेश बनाने को मूर्खतापूर्ण मानता था लेकिन सभी देशो के मन अफ्रीका को कौन पहले कब्ज़ा करता है, इसका विचार जरूर था।
अफ्रीका की समस्या पर 1885 ईस्वी का बर्लिन सम्मेलन
कोई बडा देश अफ्रीकी समस्या पर खुल कर इच्छा जाहिर नहीं कर रहा था लेकिन सबका ध्यान अफ्रीका पर जरूर था। इससे कौन अफ्रीका पर अपना सबसे पहले अधिकार जतायेगा इस पर मतभेद शुरू हुए। इन सब के कारण 1885 में अफ्रीकी समस्या पर एक बर्लिन में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया, इसमें अमेरिका सहित कई बड़े यूरोपीय देशों ने भाग लिया। जिसमे निम्न बाते तय की गयी:
- इंटरनेशनल कांगो एसोसिएशन के अफ्रीकी इलाके को अंतर्राष्ट्रीय राज्य के रूप में घोषित किया जाये
- एक अंतर्राष्ट्रीय कानून बनाया जाये ताकि उसके अनुसार यूरोपीय देश अफ्रीका में इलाके हासिल कर पाए
- जिस यूरोपीय देश का अधिकार किसी तट पर होगा उसे उस इलाके के अंदर के क्षेत्र पर कब्ज़ा ज़माने में प्राथमिकता मिलेगी
कांगो फ्री स्टेट की स्थापना
बर्लिन सम्मलेन, 1885 में जो इलाके अंतर्राष्ट्रीय कांगो एसोसिएशन के पास थे उनको मिलाकर कांगो फ्री स्टेट की स्थापना की गयी। यह अंतर्राष्ट्रीय ट्रस्टशिप का अनोखा उदाहरण था। इसमें निम्न बातें थी:
- सम्मेलन का शासनतंत्र लियोपोल्ड-II को सौंपना जबकि बेल्जियम सरकार से कांगो फ्री स्टेट से कोई सम्बन्ध नहीं होगा
- नए राज्यों की सीमाएं तय करना
इसका दूसरा सम्मेलन 1889 ईसवी में ब्रुसेल्स में बुलाया गया।
लियोपोल्ड-II और कांगो फ्री स्टेट का शोषण
लियोपोल्ड-II कांगो फ्री स्टेट को एक मुनाफे वाला स्त्रोत बनाना चाहता था। अतः उसने कांगो फ्री स्टेट के बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों को लूटना शुरू किया।
अमेरिका और यूरोप में प्राकृतिक रबड़ की बहुत मांग रहती थी, लियोपोल्ड ने वह के आदिवासियों को रबड़ अधिक से अधिक पैदा करने के लिए बहुत शोषण किया और कुछ ही समय में कांगो दुनिया का सबसे बड़ा रबड़ उत्पादक राज्य बना गया।
लियोपोल्ड-II के लालच के कारण वह के आदिवासियों से काफी परिश्रम करवाया गया। मानवीय अत्याचार और शोषण से ये आदिवासी बेहद कमज़ोर और दुर्बल हो गए। रबड़ की खेती विश्व इतिहास में गुलामी का प्रतीक बन गयी। लेकिन इससे लियोपोल्ड और यूरोपीय लोगों ने खूब धन कमाया।
चूँकि अफ्रीका का बँटवारा और उपनिवेशवाद बहुत बडा विषय है अतः हमने इसे दो भागों में बांटा है। यह अफ्रीका के बंटवारा का पहले भाग है। दूसरा भाग यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते है।
यह आर्टिकल आधिकारिक स्त्रोत जैसे प्रमाणित पुस्तके, विशेषज्ञ नोट्स आदि से बनाया गया है। निश्चित रूप से यह सिविल सेवा परीक्षाओ और अन्य परीक्षाओ के लिए उपयोगी है।
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About the author
Ankita is German Scholar and UPSC Civil Services exams aspirant. She is a blogger too. you can connect her to Instagram or other social Platform.