अफ्रीका का बँटवारा और अफ्रीका में Kris Bryant calls Astros’ sign stealing ‘worse than steroids’ – Sports Illustrated turinabol tablets fda fiddles with remote drug inspections while pharma burns उपनिवेशवाद को पहले भाग में बेसिक स्तर से बताया गया है। यह दूसरा भाग साम्राज्यवादी लालच, युद्ध और प्रतिद्वंदिता के बाद अफ्रीका के बँटवारे को बताता है।
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अफ्रीका का बँटवारा, लूट और सीधी रेखाएं
बर्लिन सम्मलेन,1885 के प्रावधानों ने केवल आने वाले 15 वर्ष के अंदर अफ्रीका को बाँट दिया। हर साम्राज्यवादी देश इस अंधदौड़ में लग गया और अफ्रीका का बँटवारा टेबल के ऊपर अफ्रीका का नक्शा रख कर, स्केल से सीधी लाइन खींच कर कर दिया गया। इसलिए अफ्रीका के नक़्शे में कुछ देशो की सीमाएं बिलकुल सीधी रेखाएं है।
लगभग सरे अफ्रीका को गुलाम बना लिया गया लेकिन कुछ हद तक इसका अपवाद इथियोपिया और लाइबेरिया था जो गुलाम नहीं बनाये गए थे। लाइबेरिया को 1882 ईस्वी में मुक्त किये गए गुलामों को बसाने के लिए की गयी थी जो अमेरिका की संरक्षण में था।
लूट का कारण:
अफ्रीका के आदिवासी लोग काफी भोले भले थे वो श्वेतों को समझ नहीं पाए। बड़ी शान-शौकत और हथियारों के साथ यूरोपीय अफ्रीका आये और उन्होंने तुरंत कबीलो के सरदारों को लालच और भय से अपने कब्जे में ले लिया।
निश्चित रूप से अफ्रीकी लोग यूरोपीय लोगो से तकनीक और ज्ञान में पीछे थे अतः इन सब ने मानसिक और भौतिक कब्ज़ा करने में यूरोपीय लोगों की सहायता की। इसके बाद भीतरी इलाको में उपनिवेशवाद का शोषण शुरू हुआ कच्चे माल के लिए पक्के रोड और रेलवे लाइन बनाना, डांक संचार शुरू करना, सरकार पदों की रचना करना आदि ठीक वैसे प्रबंध किये गए जैसे अन्य उपनिवेशों के शोषण में किये जा रहे थे।
अफ्रीका का बँटवारा और साम्राज्यवादी देशों की चिंता
उस समय इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, जर्मनी मुख्य साम्राज्यवादी देश थे जो आपस में प्रतिस्पर्धा भी कर रहे थे। कोई नहीं चाहता था की कोई सहयोगी देश दूसरे खेमे में जाकर कुछ संकट पैदा करे अतः एक दूसरे को अपनी महत्वकांशा के लिए समर्थन देना शुरू कर दिया:
- पुर्तगाल ने अंगोला और मोज़ाम्बिक के तटों और अंदर तक कब्ज़ा जमा लिया था
- इटली ने सोमालीलैंड और इरिट्रिया तक कब्जा किया
- जर्मनी ने जर्मन ईस्ट-अफ्रीका, टोगोलैंड, कैमरून, जर्मन दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका को उपनिवेश बनाया
- फ्रांस ने पश्चिमी अफ्रीका क्षेत्र में प्रवेश किया वहां उसने उत्तर में अल्जीरिया से लेकर सूडान तक और गिनी के तटों तक उपनिवेश स्थापित कर लिए थे। इसके साथ साथ उसका लालसागर के तटों पर भी कब्ज़ा हो गया था
- ब्रिटेन के पास दक्षिण अफ्रीका के कई हिस्से जैसे केप ऑफ़ गुड होप, रोडेशिया शामिल थे। 1882 ईस्वी में उत्तरी मिश्र भी ब्रिटेन के कब्जे में आ गया था।
सभी साम्राज्यवादी देश अफ्रीका के बड़े हिस्से में उपनिवेश बनाने की कोशिश कर रहे थे:
- जर्मनी देर से अफ्रीका में आया लेकिन उसने ज़ोर शोर से अफ्रीका में प्रसार करना शुरू किया। जर्मनी कामना कर रहा था की वे कांगो और पुर्तगालियो के उपनिवेश हड़प कर सकते है
- फ्रांस भी अफ्रीका के संपूर्ण पश्चिम से लेकर पूर्वी भाग तक के बड़े साम्राज्य की कोशिश कर रहे थे। इसमें भूमध्यसागर के महत्वपूर्ण भागों पर कब्ज़ा शामिल था
- ब्रिटेन की सबसे बड़ी कामना थी। वे दक्षिण में केप ऑफ़ गुड होप से लेकर उत्तर में काहिरा तक उपनिवेश बनाने का सोच रहे थे।ब्रिटेन संपूर्ण मिस्र और नील नदी पर कब्जा जमाने की योजना बना रहे थे
साम्राज्यवादी देशों के बीच औपनिवेशिक प्रतिस्पर्धा
बर्लिन सम्मेलन,1885 से 1900 तक आते आते कई साम्राज्यवादी देश एक दूसरे से अफ्रीका में एक दूसरे से ईर्ष्या करने लगे और युद्ध की नौबत आ गयी। 1896 ईस्वी में अडोवा का युद्ध और फासोदा का संकट, दो महत्वपूर्ण उदाहरण है जिसमे साम्राज्यवादी खीचतान का इतिहास मिलता है:
अडोवा का युद्ध, 1896
इटली भी पुर्तगालियो से बराबरी कर रहा था जिसने अंगोला और मोजाम्बिक के अंदर तक काफी बड़े क्षेत्र हथिया लिए थे। इटली के सैनिक सोमालीलैंड और इरिट्रिया पर कब्ज़ा जमा चुके थे लेकिन वो आगे और बढ़ कर इथियोपिया और नील नदी तक जमीनों पर कब्ज़ा जमाना चाहते थे।
लेकिन इथियोपिया के सैनिको ने इटली से सैनिको को अडोवा नमक स्थान पर हराया। यह बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि किसी अफ्रीकी सेना ने पहली बार किसी यूरोपीय सेना को पराजित किया था।
ओडारमैन का युद्ध
1882 में उत्तरी मिस्र ब्रिटेन के कब्जे में आ चूका था। ब्रिटेन नील नदी क्षेत्र के लिए योजनायें बना रहा था। ऐसे में ब्रिटिश सेना अधिकारी किचनर को दक्षिण मिस्र के मिशन पर भेजा गया। जहा स्थानीय लोगो से ब्रिटिश सेना हार गयी।
फासोदा का संकट
फासोदा का संकट नील नदी क्षेत्र में कब्ज़ा ज़माने को लेकर ब्रिटेन और फ्रांस के बीच हुआ। यह साम्राज्यवादी देशो के मध्य महत्वकांशा का परिणाम था। दोनों देश युद्ध के कगार पर आ गए लेकिन बाद में आपसी समझ के बाद पीछे हट गए।
बोअर का युद्ध
ब्रिटिशों ने 1815 ईस्वी में डच लोगो से केप ऑफ़ गुड होप लिया था और डच लोग, जहां स्थानीय भाषा में उन्हें बोअर कहा जाता था, कही और चले गए। कुछ समय बाद ही ट्रांसवाल और दक्षिणी अफ्रीका में हीरे की खानों का पता चला। इससे ब्रिटिश पूंजी का वहाँ ताँता लग गया।
ट्रांसवाल और ऑरेंज फ्री स्टेट जहा मूलतः डच लोग रह रहे थे, उनसे ब्रिटेन को लड़ना पड़ा। जिसे बोअर का युद्ध कहते है। यह समय तक चला अंततः ब्रिटेन ने इन क्षेत्रो पर कब्ज़ा जमा लिया
इस तरह इथियोपिया और लाइबेरिया को छोड़ कर पूरा अफ्रीका को बाँट लिया गया और कई क्षेत्रो में साम्राज्यवादी प्रतिद्वंदिता शुरू गयी थी जिसका असर विश्व के अन्य भागो के उपनिवेश पर भी पड़ रहा था। अफ्रीका का उपनिवेशिक बँटवारा पूर्णतया लालच और मानवीय शोषण का उदाहरण है।
यह आर्टिकल आधिकारिक स्त्रोत जैसे प्रमाणित पुस्तके, विशेषज्ञ नोट्स आदि से बनाया गया है। निश्चित रूप से यह सिविल सेवा परीक्षाओ और अन्य परीक्षाओ के लिए उपयोगी है।
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About the author
Ankita is German Scholar and UPSC Civil Services exams aspirant. She is a blogger too. you can connect her to Instagram or other social Platform.