इस लेख में वेलेजली और सहायक संधि प्रणाली [Sahayak Sandhi] के बारे में बताया गया है, जिसने कंपनी और ब्रिटिश सत्ता को भारत में लम्बे समय तक पैर ज़माने का आधार दे दिया था।
वेलेजली (lord wellesley) ने भारतीय राज्यों को अंग्रेजी राजनीतिक परिधि में लाने के लिए सहायक संधि प्रणाली का प्रयोग किया। इससे अंग्रेजी सत्ता की श्रेष्ठता स्थापित हो गई और नेपोलियन का भय भी टल गया। इस प्रणाली ने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के प्रसार में विशेष भूमिका निभाई और उन्हें भारत का एक विस्तृत क्षेत्र हाथ लग गया।
अल्फ्रेड लॉयल के अनुसार कंपनी के भारतीय युद्ध में भाग लेने के चार परिस्थितियां थी:
- प्रथम अवस्था में कंपनी ने भारतीय मित्र राजाओं को उनके युद्धों में सहायता के लिए अपनी सेनाएं किराए पर दी जैसे 1768 ईस्वी में निजाम से संधि के अनुसार किया
- दूसरी अवस्था में कंपनी ने स्वयं अपने मित्रों की सहायता से युद्धों में भाग लिया
- तीसरी अवस्था में भारतीय मित्रों ने सैनिक के स्थान पर धन दिया उस धन की सहायता से कंपनी ने अंग्रेज अफसरों की देखरेख में सेना भर्ती कर उन्हें प्रशिक्षण और साज-सज्जा इत्यादि देकर तैयार किया जैसे हैदराबाद की संधि जो 1798 ईस्वी में हुई थी
- इसका अंतिम तथा प्राकृतिक चरण तब आया जब कंपनी ने अपने मित्र राजाओं के राज्य की सीमाओं की रक्षा का भार स्वयं अपने ऊपर ले लिया और इस उद्देश्य से अपनी एक सहायक सेना उस राज्य में रख दी। भारतीय मित्र राजाओं को धन नहीं देना था अपितु उसके बदले अपने प्रदेश का एक भाग कंपनी को देना होता था जैसा कि निजाम ने 1800 ईस्वी में किया
सहायक संधि की शुरुआत किसने की थी
वेलेजली ने सहायक संधि (Subsidiary Alliance) का अविष्कार नहीं किया इस प्रणाली का अस्तित्व तो पहले से ही था तथा धीरे-धीरे विकसित हुई थी। संभवत डुप्ले प्रथम यूरोपियन था जिसने अपनी सेनाएं किराए पर भारतीय राजाओं को दी थी।
वेलेजली ने सहायक संधि का किस प्रकार उपयोग किया
अंग्रेजों ने भी सहायक संधि प्रणाली अपना ली थी। क्लाइव के काल से यह प्रणाली लगभग सभी गवर्नर जनरल ने अपनाई थी। वेलेजली की विशेषता केवल यह थी कि उसने इसका विकास कर अपने संपर्क में आने वाले सभी देशी राजाओं के संबंधों में इसका प्रयोग किया।
प्रथम सहायक संधि 1765 ईस्वी में अवध से की गई थी, जब कंपनी ने निश्चित धन के बदले उसकी सीमाओं की रक्षा का वचन दिया। इसके अतिरिक्त अवध ने एक अंग्रेज रेजिडेंट को लखनऊ में रखना स्वीकार कर लिया।
फरवरी 1787 ईस्वी में कंपनी ने कर्नाटक के नवाब से यह अनुरोध किया कि वह किसी अन्य विदेशी शक्ति से कोई संबंध नहीं रखेगा। कालांतर में जब जॉन शोर ने अवध के नवाब से 21 जनवरी 1798 को एक संधि की तो उसने इस बार यह भी अनुरोध किया कि वह किसी अन्य यूरोपीय व्यक्ति को अपनी सेवा में ना लें अथवा उसे कोई संबंध न रखें।
धन के स्थान पर क्षेत्र की मांग एक प्राकृतिक चरण ही था, वास्तव में भारतीय रियासतें धन के मामले में पीछे रह जाती थी तथा शेष मांगों (arrears) में वृद्धि ही होती चली गई थी। अतः कंपनी ने इन सेनाओं के भरण-पोषण के लिए पूर्णतया प्रभुसत्ता युक्त प्रदेश (Territory in full sovereignty) देने की मांग की।
सहायक संधि की शर्तें क्या होती थी ?
एक सहायक संधि प्राय इन प्रतिबंधों और शर्तों पर होती थी
- भारतीय राजाओं के विदेशी संबंध कंपनी के अधीन होंगे वह कोई युद्ध नहीं करेंगे तथा अन्य राजाओं से बातचीत कंपनी द्वारा ही करेंगे
- बड़े राज्यों को अपने यहां एक ऐसी सेना रखनी होती थी जिसकी कमान अंग्रेजी अधिकारियों के हाथ में होगी और जिसका उद्देश्य सार्वजनिक शांति बनाए रखना होता था इसके लिए उन्हें पूर्ण प्रभुसत्ता युक्त प्रदेश कंपनी को देना होगा छोटे राज्यों को कंपनी को नगद धन देना होता था
- राज्यों को अपनी राजधानी में एक अंग्रेजी रेजिडेंट रखना जरूरी होता था
- राज्यों को कंपनी की अनुमति के बिना किसी अन्य यूरोपीय व्यक्ति को सेवा में नहीं रखना होता था
- कंपनी राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी (लेकिन इसका उल्लंघन किया गया)
- कंपनी राज्यों की प्रत्येक प्रकार के शत्रुओं से रक्षा करेगी
अगले लेख में इसे और आगे बताया जायेगा
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