अलाउद्दीन खिलजी, Alauddin Khilji
भारत इतिहास

अलाउद्दीन खिलजी [Alauddin Khilji][in Hindi UPSC GS]

अलाउद्दीन खिलजी [Alauddin Khilji] दिल्ली सल्तनत में एक महान शासक था जिसने अपनी महत्वकांशाओ के चलते दक्षिण भारत तक अपना साम्राज्य फैला लिया था। खिलजी दिल्ली सल्तनत में भारतीय मुसलमान थे जो प्रसिद्ध खिलजी क्रांति से उभरे और काफी लम्बे समय तक भारतीय इतिहास पर छाए रहे

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ऐसे बताया गया है :

अलाउद्दीन खिलजी कौन था ?

यह अपनी युद्ध रणनीति, अपने शासन के दौरान किये गए नवीन प्रयोग और अपने व्यक्तित्व के लिए मध्यकालीन भारतीय इतिहास का एक चर्चित शासक रहा है।

अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji) भारतीय इतिहास में अपनी बुद्धिमत्ता, सफल रणनीति और प्रशासनिक दक्षता के लिए जाना जाता है। अकबर और शेरशाह सूरी के बाद अलाउद्दीन खिलजी को मध्यकालीन भारत के सबसे सफल और महान शासक के तौर पर मान सकते है।

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1. अलाउद्दीन खिलजी का वास्तविक नाम

उसके बचपन का वास्तविक नाम गुरशास्प था।

2. अलाउद्दीन खिलजी का समयकाल

1296 ईस्वी-1316 ईस्वी (13वी शताब्दी के अंत से 14वी शताब्दी के शुरुआत तक)

3. अलाउद्दीन खिलजी कैसे सुल्तान बना

अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत की गद्दी मानवीय भावनाओ की उपेक्षा करके हासिल की थी। यह अपने ससुर जलालुद्दीन ख़िलजी की हत्या करके दिल्ली का सुल्तान बना।

4. अलाउद्दीन ख़िलजी की विशेषता

अलाउद्दीन एक बेहतर कूटनीतिज्ञ के साथ साथ एक प्रयोगकर्ता भी था। जहाँ उसने अपने शासन में धर्म और सुल्तान (राजनीति) को अलग-अलग किया। वही भारतीय सीमाओं की मंगोलो से रक्षा की। एक बड़ी सेना को सिमित वित्तीय खर्चे पर रखने का उपाय खोजा और न्यूनतम मूल्य पद्धति की शुरुआत की। इसके साथ साथ अलाउद्दीन खिलजी को ही दिल्ली सल्तनत को दक्षिण तक पहुंचाने का श्रेय दिया जाता है।

5. अलाउद्दीन की उपाधियाँ

दिल्ली की गद्दी पर आने के बाद उसने यामिन-उल-ख़िलाफ़त-नासिरी-अमीर-उल-मोमिनीन नामक उपाधि ग्रहण की लेकिन कभी ख़लीफ़ा से अपने पद को स्वीकृत नहीं करवाया

6. अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु

उसकी मृत्यु किसी रोग शायद त्वचा रोग से 2 जनवरी, 1316 ईस्वी में हुई

7. अलाउद्दीन खिलजी की कब्र

मालिक काफूर ने अलाउद्दीन इच्छा का पालन किया और उसे दिल्ली में क़ुतुब मीमार के परिसर में दफना दिया गया।

अलाउद्दीन खिलजी की सल्तनत का विस्तार की चुनौतियां

दिल्ली की गद्दी सँभालते ही उसे अपने अमीर वर्ग से विद्रोह का सामना करना पड़ा और सल्तनत के कई हिस्सों पर भी विरोध शुरू हो गया था। अलाउद्दीन को इन विद्रोहों से निपटना था , साथ साथ उसकी महत्वकांशा में सल्तनत को उन हिस्सों तक फैलाना था जो हिस्से दिल्ली सल्तनत से बाहर थे। जो की निम्न है :

  • इन सब में राजपूत राज्य सबसे महत्वपूर्ण थे क्योंकि अभी तक कोई भी दिल्ली सल्तनत का शासक पूर्णरूप से राजपूत राज्यों को पराजित नहीं कर पाया था। चित्तौड़ और रणथम्भौर के राज्य भी चुनौती पेश कर रहे थे।
  • इसके अलावा मालवा, धार, उज्जैन और बुन्देलखण्ड का विस्तृत प्रदेश अभी पूर्ण स्वतंत्र था।
  • दोआब, अवध, वाराणसी और गोरखपुर से दिल्ली सल्तनत से बाहर था
  • बिहार, बंगाल, उड़ीसा भी हिन्दू राजा या स्वतंत्र मुस्लिम शासकों के पास था
  • दक्षिण भारत में दिल्ली सल्तनत अभी तक नहीं पहुंची थी
अलाउद्दीन खिलजी ,Alauddin Khilji dynasty
Source : Wikipedia

अलाउद्दीन खिलजी अपने योग्य सैन्य बल और अधिकारियों के दम पर लगातार दिल्ली सल्तनत को फैलता गया। मुल्तान और सिंध पर उसने अर्काली खान से राज्य छीन कर दिल्ली सल्तनत में मिला लिया।

परन्तु राजपूत राज्यों को पूरी तरह से हराया नहीं जा सका लेकिन उन्हें कर देने के लिए सफलतापूर्वक बाध्य कर दिया गया। दक्षिण में देवगिरि अभियान में उसने दिल्ली सल्तनत को मालिक काफूर के सफलतम पहुँचाया।

अलाउद्दीन के कुशल सैन्य अधिकारी

अलाउद्दीन इस मामले में बेहद सौभाग्यशाली था की उसे अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए कुशल सैन्य अधिकारी मिले थे। उलुग खान, मलिक काफूर, नुसरत खां, गाज़ी मालिक जैसे योग्य सेनानायको ने अलाउद्दीन की सल्तनत को चारो तरफ फैला दिया। जिसके कारण ही वह इतने सारे चल रहे विद्रोहों पर काबू का पाया।

अकत खान का षड्यंत्र और नीतियों पर विचार

अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji) गद्दी पर अनाधिकारी रूप से बैठा था जिसके बाद उसे अपदस्थ करने के लिए काफी विद्रोह और षड़यंत्र हुए। उनमे से एक षड़यंत्र अकत खां का था जो उसका भतीजा था। अकत खान ने अलाउद्दीन पर हमला कर अधमरा कर पटक दिया था परन्तु उसे मरना भूल गया। लेकिन होश आने पर अलाउद्दीन ने उसे मार कर फिर से गद्दी पा ली।

उसके बाद लगातार षड्यंत्र और विद्रोहो पर उसने काफी विचार विमर्श किया और निम्न निष्कर्ष पर पहुँचा :

  • कमज़ोर जासूसी प्रणाली जिससे सुल्तान को किसी षड़यंत्र के बारे में ठीक से पता नहीं चल पता था
  • अमीरों का सामाजिक सम्बन्ध जिसके कारण आमिर लोग आपस में विवाह करके सुल्तान के प्रति गुटबंदी से ताकतवर हो जाते थे और षड़यंत्र करते
  • अमीरो की शराब महफिले जिसमे शराब के नशे में सुल्तान के प्रति सम्मान भी अमीर भूल जाया करते थे
  • अमीरो के पास काफी धन सम्पदा होना जिसका दुरूपयोग होना

अलाउद्दीन खिलजी की नीतियाँ

विशाल शासन को स्थापित करने और उसे व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए इसने निम्न नीतियों को अपनाया :

  • धर्म को राजनीति से पृथक्करण करना अलाउद्दीन का एक विशेष प्रयोग था। इसने उलेमाओं के राजकार्य में बाधा डालने और हस्तक्षेप करने को बेहद सीमित कर दिया था। उससे पहले दिल्ली सल्तनत में उलेमाओं का काफी हस्तक्षेप था। उसने कभी ख़लीफ़ा से अपने पद को स्वीकृत नहीं करवाया यद्यपि सामाजिक क्षेत्रों में धार्मिक हस्तक्षेप बना रहा।
  • अमीरों को नियंत्रित करना इसका दूसरा महत्वपूर्ण काम था जिसने सल्तनत में विद्रोहों को कम कर दिया था। अमीरो की गतिविधियों पर पहले की अपेक्षा अधिक कड़ाई से नियंत्रण किया गया
  • प्रशासनिक सुधार : अलाउद्दीन अपने प्रशासन में अनुशासन पसंद करता था इसलिए उसके लिए जरुरी था की वह सही पद पर सही व्यक्ति को चुने। अलाउद्दीन ने सरकारी सेवाओं के पद योग्य लोगो के लिए खोल दिए और उसने उच्च पदों पर अमीर और प्रभावशाली मुस्लिंमो के लिए आरक्षित पदों को खत्म किया। उसके कार्यकाल में कई योग्य लोगो , जिनमे कई हिन्दू भी थे , को जगह मिली।
  • अलाउद्दीन ने स्वयं पुलिस विभाग में सुधार किये
  • सल्तनत में डाक पद्धति को सुधारा गया। घुड़सवार सुल्तान के डाक समाचार को तुरंत पहुंचने के लिए तैनात किये गए

अलाउद्दीन खिलजी की वित्तीय सुधार

अपनी महत्वकांक्षा के चलते अलाउद्दीन एक बड़ी सेना सीधे सुल्तान के निर्देश में रखना चाहता था जिसके लिए उसे बड़े वित्तीय आधार की जरुरत थी। इसका समाधान उसके प्रशासनिक और वित्तिय सुधारों से निकला जहाँ उसने बाजार में मूल्यों का निर्धारण किया, बाजार को नियंत्रित किया, रोज़मर्रा की जरुरी सामान पर राशनिंग और न्यूनतम मूल्य घोषित किये।

अलाउद्दीन खिलजी के वित्तीय सुधार इतिहास में काफी मशहूर हुए क्योंकि इससे न केवल वह बड़ी सेना बना पाया बल्कि आम जनता को भी काफी फायदा पहुँचा। इसके सुधारो की प्रमुख विशेषताएँ निम्न है :

  • धन का दुरूपयोग रोकने और बेहतर राजस्व प्रबंधन के लिए अलाउद्दीन पहला दिल्ली सल्तनत का ऐसा शासक था जिसने ईक्ता और जमींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया था (लेकिन सभी प्रकार की भूमियों को जप्त नहीं किया गया था)
  • खुत, मुकद्दम और चौधरी जो भूमि जमींदार थे और सल्तनत को राजस्व देते थे, उनके अधिकार ख़त्म कर दिए गए क्योंकि ये वर्ग बेहद काम राजस्व राजकोष में देते और गरीब काश्तकार से ऊंचे लगान लेते थे। इससे आम जनता परेशान थी और राजस्व का भी नुकसान हो रहा था।
  • राजस्व एकत्रित करने के नए नियम लागू किए
  • राज्य में मुद्रास्फीति और बाजार पर नियंत्रण किया गया
  • सिपाही और अधिकारियों के वेतन निश्चित कर दिए गए। वेतन नकद या भूमि के रूप तय किये गए।
  • सभी नियम कठोर तरीके से लागू किये गए

अलाउद्दीन खिलजी का बाजार नियंत्रण

अलाउद्दीन का बाजार नियंत्रण इतिहास में एक प्रमुख शोध का विषय है। यह बात तो निश्चित है की उसने बाज़ार नियंत्रण का कारण अपनी बड़ी सेना को बनाने के उद्देश्य से किया था विशाल सल्तनत का सपना और मगोलों के हो रहे आक्रमणों से बचने के लिए भी बड़ी सेना अनिवार्य थी। लेकिन बाजार नियंत्रण से इससे आम जनता को भी काफी राहत पहुंची।

  • सल्तनत विशेषकर दिल्ली में कीमतें घटाने का सफल प्रयास किया गया। सुल्तान के आदेश से पहले कोई व्यापारी अधिक कीमतें नहीं वसूल कर सकता था। इससे दैनिक जीवन की चीज़े काफी सस्ती हो गयी। गेहूँ, जौ, चना, चावल, मोठ आदि 4 जीतल (औसतन) प्रति मन (40 किलो) हो गयी थी।
  • जमाखोरी और मुनाफाखोरी करने वालो को कठोर दण्ड दिया जाता था।
  • व्यापारियों द्वारा सामान बेचने और कीमतों की लिस्ट बनाई जाती थी जिस पर व्यापारी को हस्ताक्षर करना पड़ता था
  • राजस्व अधिकारियों को कड़ाई से आज्ञा का पालन करने को कहा गया। ये अधिकारी किसी बाजार में कीमतों का गुपचुप पता लगाते थे की कही कोई सामान न्यूनतम कीमतों से ऊपर तो नहीं बिक रहा है। साथ साथ वे सामान का वजन, गुणवत्ता को भी मापते थे ताकि कोई भी मान सही बिके। इन राजस्व अधिकारियो पर भी सुल्तान के जासूस नज़र रखते थे ताकि कोई अधिकारी लापरवाही या भ्रष्टाचार ना करें।
  • बाजारो का वर्गीकरण किया गया। जरुरी सामानो के बाजार को अन्य सामानो के बाजार से अलग किया गया। दिल्ली में अनाज बाजार अलग बनाया गया जिसमे बाहर से भी व्यापारी आते थे . ठीक ऐसे ही दासो, घोड़ो और मवेशियों के अलग बाजार बनाये गए
  • मौसम के परिवर्तनों का कीमतों पर प्रभाव न पड़े इसलिए अन्न भंडार बनाये गए। ये पूरी तरह भरे रहते थे।
  • आपदा या जरूरतमंदों के लिए राशन की व्यवस्था भी की गयी
  • अकाल में प्रत्येक घर को आधा मन (20kg) अनाज राज्य की ओर से दिया जाता था।
  • बाहर से आने वाले सामान और व्यापारियों के लिए सराय-ऐं-अदल बनाई गयी जिसको राज्य की और से मदद (सब्सिडी ) मिलती थी
  • बाहर व्यापार करने के लिए ऋण दिया जाता था

अलाउद्दीन खिलजी की कर प्रणाली

अलाउद्दीन से बहुत अधिक लगान वसूला। लेकिन उसकी कर प्रणाली में लिखित और कानूनी चीज़े बाद गयी थी। कर प्रणाली केवल शरीयत के हिसाब से कानूनी की गयी जो की निम्न है :

  • ख़राज, जो की एक भूमिकर था, पर 50% कर लगा दिया गया जो की बहुत ज्यादा रहा
  • चराई कर – मवेशियों पर लगाया गया
  • करी या कराई भी अन्य कर थे
  • जजिया गैर मुस्लिम जनता से लिया जाता था। लेकिन जज़िया स्त्रियो, अपंगो, बच्चों, ब्राह्मण से नहीं लिया जाता था
  • ख़ुम्स भी महत्वपूर्ण कर था जिसका उपयोग सेना के लिए किया जाता था
  • ज़कात, केवल मुस्लिमों से लिया जाता था। जो सम्पति का 40वा हिस्सा था

अलाउद्दीन की कर प्रणाली को प्रभावी ढंग से निर्धारण और लागु करने का श्रेय नायब वज़ीर शर्फ़ कयिनी को दिया जाता है जो एक बेहतरीन अधिकारी था।

मंगोलों के लगातार आक्रमणों को रोकना

मंगोल आक्रमण मध्यकालीन भारत में एक गंभीर समस्या बन कर सामने आयी। लगातार हमलों से न केवल जान माल की हानि होती थी बल्कि दिल्ली में सत्ता को लगातार भय बना रहता था। इस समस्या को अलाउद्दीन में काफी प्रभावी ढंग से रोक दिया।

उसने पश्चिमी सीमाओं को किलो और चौकियों से लैस किया। मंगोलो पर उसने आक्रमण किये और उन्हें रोक दिया। मंगोलों से भारत को अलाउद्दीन के समय सुरक्षित किया जा सका।

दिल्ली सल्तनत का दक्षिण में प्रवेश

1. देवगिरि पर आक्रमण

देवगिरि में यादव शासक रामदेव या रामचंद्र देव का शासन था। अलाउद्दीन के दो बड़े विजय अभियान से देवगिरि दिल्ली सल्तनत दक्षिण तक पहुंची:

  • देवगिरि पर पहला आक्रमण (1296) : यादव शासक रामचंद्र देव ने आक्रमण से पहले कोई तैयारी नहीं की थी जिसके कारण मालिक काफूर (अलाउद्दीन का सैन्यपति का काम आसान हो गया था। रामचंद्र देव ने अलाउद्दीन के सामने समर्पण करके संधि की और अलाउद्दीन ने उसका राज्य फिर से उसे सौंप दिया बशर्ते वह दिल्ली सल्तनत के अधीन रहेगा और राजकोष में कर देता रहेगा।
  • देवगिरि पर दूसरा आक्रमण (1308) : देवगिरि पर दूसरे आक्रमण का कई इतिहासकारों ने कारण बताया है लेकिन बरनी द्वारा इसका कारण रामचंद्र देव द्वारा राजकोष में कर नहीं देना बताया है , जो सबसे अधिक विश्वसनीय लगता है। 1307 ईस्वी में अलाउद्दीन मंगोल और राजपूतों के साथ व्यस्त हो गया था और देवगिरि दिल्ली से काफी दूर था , इन दोनों बातो का फायदा रामचंद्र देव ने उठाया और संभवतया उसने अलाउद्दीन के विरोधियो का भी साथ दिया और टैक्स भी देना बंद कर दिया। जिस कारण 1308 ईस्वी में मालिक काफूर के नेतृत्व में देवगिरि को फिर से पराजित किया गया।

लेकिन देवगिरि के दूसरे आक्रमण में अलाउद्दीन ने रामचंद्र देव को दण्डित करने की बजाय उसे सम्मान दिया और राजरायने की उपाधि और गुजरात में जागीरे दी। इस कूटनीति से अलाउद्दीन में शत्रु को मित्र बनाकर दक्षिण में दिल्ली सल्तनत का एक विश्वासपात्र स्थापित कर दिया . इसके बाद रामचंद्र देव दिल्ली सल्तनत का वफादार बना रहा। लेकिन रामचंद्र देव की मृत्यु के बाद फिर से दिल्ली सल्तनत का विरोध शुरू हो गया था।

2. द्वारसमुद्र पर आक्रमण (1310)

होयसल और यादव राज्यों में लगातार संघर्ष होता रहता था। अलाउद्दीन देवगिरि के बाद सुदूर दक्षिण को भी अपने साम्राज्य में मिलाना चाहता था। इसके लिए मलिक काफूर ने होयसल पर हमला किया। इसमें रामचंद्र देव ने अलाउद्दीन की पूरी मदद की। बल्लाल देव को काफूर ने पराजित किया जिसके बाद बल्लाल पांडय ने संधि करना उचित समझा।

3. मदुरै या माबर पर विजय (1311)

बल्लाल पंड्या ने संधि के बाद मालिक काफूर की माबर पर आक्रमण करने में सहायता की जिसके बाद मालिक काफूर को एक और विजय मिली।

इसके बावजूद अलाउद्दीन की दक्षिण की विजयों में वारंगल दुर्ग अभी अधूरा ही रहा। मालिक काफूर न तो वारंगल के पंड्या राजाओ को कभी अपनी अधीनता स्वीकार करवा पाया नाही वारंगल दुर्ग को जीत पाया। फिर भी अलाउद्दीन की दक्षिण की नीति उसकी उत्तरी भारत की युद्ध नीतियों से अलग और दूरदर्शी थी। दक्षिण भारत में उसने अपने शत्रुओं को सहयोगी राज्य बना उन्हें सम्मानित किया जिससे उसका राज्य आसानी से दक्षिण में बना रहा।

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About the author

Ankita is German Scholar and UPSC Civil Services exams aspirant. She is a blogger too. you can connect her to Instagram or other social Platform.

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