29 मार्च, 1857 बैरकपुर छावनी में मंगल पांडेय द्वारा विद्रोह शुरू हुआ और 8 अप्रैल, 1857 को फांसी दे दी गयी। धीरे धीरे विद्रोह फैला और 10 मई, 1857 तक क्रांति व्यापक रूप से फ़ैल गयी थी। 1857 की क्रांति में विद्रोही सैनिको ने दिल्ली चलना शुरू किया और मुग़ल सम्राट बहादुर शाह जफर को क्रांति का नेतृत्व के लिए चुना।
बहादुर शाह जफर को क्यों चुना गया
कारण 1: चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक के बाद भारत भूमि के उत्तर और दक्षिण में राजनैतिक एकीकरण मुगलों ने किया था यद्यपि कनिष्क, हर्षवर्धन और गुप्त काल में भी काफी बड़े क्षेत्र पर शासन किया गया लेकिन वह केवल भारतीय प्रायद्वीप के उत्तरी हिस्से तक ही सीमित रहा । लेकिन मुगलों के 300 वर्षो से ज्यादा शासन काल में धार्मिक सहिष्णुता और प्रशासनिक दक्षता के कारण उत्तर और दक्षिण भारत में राजनैतिक एकीकरण हुआ जिसके कारण भारत में रहने वाले सभी समुदाय के लोगो को मुगल नेतृत्व में भरोसा बना हुआ था।
कारण 2: 300 वर्षों के शासन में सभी समुदायों का मुगल शासन पर भरोसे के कारण 1857 की क्रांति में नैसर्गिक नेतृत्व बहादुर शाह जफ़र के पास आ गया। उस समय क्रन्तिकारी भी यही बात सोच रहे थे क्योकि अखिल भारतीय नेतृत्व सहमति मुगलो के ही पास थी इसलिए बहादुर शाह जफर को क्रान्तिकारियो ने चुना। यह भी महत्वपूर्ण है की क्रांतिकारी राजनीतिक रूप से प्रेरित थे और इसमें धर्म की भूमिका न के बराबर थी।
क्या बहादुर शाह जफर सफल नेतृत्व दे पाए
उस समय मुगल नेतृत्व और प्रभाव बहुत कमजोर हो चुका था क्योकि अकबर, जहाँगीर और औरंगजेब जैसे सम्राट जैसे बाद के सुल्तान नहीं निकले लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप से अखिल भारतीय के नज़रिये से मुगलों की मान्यता थी।
बहादुर शाह जफ़र उस समय काफी वृद्ध हो चुके थे और प्रभावी भी नहीं थे लेकिन क्रांतिकारियों के जिद आग्रह और मज़बूरी में उन्होंने 1857 की क्रांति का नेतृत्व स्वीकार किया लेकिन वह इसमें केवल एक प्रतीक की तरह थे क्योकि असली नेतृत्व जनरल बख्त खां के पास था।
सफल नेतृत्व न देने का कारण
अपनी मजबूरी, वृद्धावस्था, व्यक्तित्व की कमी और कमज़ोर मुगल सत्ता के कारण बहहर शाह जफ़र इसे सफल नेतृत्व नहीं दे पाए और कुछ ही समय बाद जब अंग्रेज प्रभावी ढंग से दमन करते हुए लोटे तो उन पर अंग्रजो ने मुक़दमा चला कर पाबंद कर दिया ।
बहादुर शाह जफर ने क्रांति के लिए क्या किया
बहादुर शाह ने शुरुआती हिचकिचाहट के बाद नेतृत्व स्वीकार किया और इसके बाद उन्होंने सभी महत्वपूर्ण शासको को अंग्रजो से लड़ने के लिए पत्र लिखे। सार्वजनिक मुद्दों पर सुनवाई के लिए न्यायालय बनाया गया। इसके साथ ही उन्होंने ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिए एक परिसंघ या एक संगठन बनाने का भी प्रयास किया था।
धीरे धीरे पूर्वी पंजाब, मध्य भारत, बिहार, बंगाल, अवध, रोहेलखण्ड, दोआब, बुंदेलखंड आदि क्षेत्रों में कई शासको में अंग्रजो के विरुद्ध आवाज़ उठायी।
क्रांति के बाद बहादुर शाह जफर
अंग्रेजी में अपने सैन्य कौशल और रणनीति से 1857 की क्रांति से हाथ से निकले क्षेत्रों को वापिस एक एक करके जीत लिया। उन्होंने कुछ विश्वसनीय लोगो को लालच देकर और सिख, मद्रासी सैनिको को अपने पक्ष में करके बहादुर शाह जफ़र को गिरफ्तार कर लिया और उसके बाद उनके दो पुत्रों कर एक पोते ही हत्या भी करवा दी गयी। इसके बाद बहादुर शाह जफ़र पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें पेंशन पर ताउम्र बर्मा भेज दिया गया।
जनरल बख्त खां कौन थे
बहादुर शाह जफ़र का नेतृत्व औपचारिक मात्रा था जबकि असली कमान जनरल बख्त खां के पास थी जो सैनिक क्रांतिकारियों का असल में नेतृत्व कर रहे थे और सैनिको के साथ दिल्ली पहुंचे थे । जनरल बख्त खां ने ही कई बातों के लिए मुगल सम्राट को राज़ी किया था। बख्त खां की टीम में दस लोग थे जिसमे 6 सेना से और 4 सिविल विभाग से थे। यह टीम मुग़ल सम्राट के अधीनस्थ एक न्यायलय की तरह भी काम करती थी।
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