आमिर खुसरो (Amir Khusrau) मध्यकालीन भारत में एक ऐसे विशेष व्यक्तितव है जो अपनी शानदार कला और राजनीतिक कारणों से जाने जाते है। आमिर खुसरो मध्यकालीन भारत में संगीत, गायन, कविताओं, साहित्य और नवाचार और भक्ति के एक केंद्र बिंदु है।
यह पेशे से कोई इतिहासकार या कलाकार नहीं थे फिर भी इनमे काफी ऐसे गुण मौजूद थे जिसके कारण तत्कालीन इतिहास में इनकी छाप स्पष्ट दिखाई देती है।
आमिर खुसरो का जन्म कब हुआ था ?
इनका जन्म 1253 ईस्वी में हुआ।
आमिर खुसरो का जन्म कहां हुआ था ?
इनका जन्म वर्तमान एटा जिला (उत्तर प्रदेश) में हुआ था जो उस समय पटियाली कस्बे के नाम से महशूर था।
आमिर खुसरो का परिवार और इतिहास
आमिर खुसरो का परिवार मध्य एशिया के लाचान जाति का था जो 13वी शताब्दी (1266-1286) के मध्य में तुर्क चंगेस खान के आक्रमण से परेशान हो कर भारत आ बसे। इनके पिता का नाम सैफुद्दीन तथा माता बलबन के युद्धमंत्री इमादुतुल मुल्क की पुत्री थी। जो की एक भारतीय मुसलमान महिला थी।
आमिर खुसरो का परिवार बलबन के काल में भारत एक शरणार्थी के रूप में भारत आया था। परन्तु जल्दी ही, लगभग 7 वर्ष की उम्र में ही आमिर खुसरो के पिता की मृत्यु हो गयी। इसके बाद उनके जीवन में ख़ालीपन को भरने के लिए वे कला और संगीत की और मुड़ गये। जल्दी ही युवा ख़ुसरो एक प्रसिद्ध संगीतकार के रूप में लोगो द्वारा पहचाने जाने लगे।
आमिर खुसरो की विशेषताएं व बनाई नई विधाएँ
युवा आमिर खुसरो की प्रसिद्धि लगातार बढ़ने लगी क्योंकि ये अपनी कला और हुनर के साथ लगातार प्रयोग और नवाचार करते रहे। आमिर खुसरो को हिंदी, फ़ारसी, ईरानी, तुरानी भाषाओं का ज्ञान था। साथ साथ उन्हें इन भाषाओं से सम्बद्ध कलाओं में भी काफी ज्ञान हो गया था।
इन्होने एक राग शैली ईमान बनाई जो उस वक्त की भारतीय और ईरानी संगीत कलाओं से मिल कर बनी थी। इसके साथ साथ इन्होने जिल्फ़, साजगरी आदि रागों का सुन्दर मिश्रण किया जो भारतीय-ईरानी रागों से बना था।
आमिर खुसरो शायद पहले मुस्लिम कवि थे जिन्होंने अपनी रचनाओं में हिंदी का काफी प्रयोग किया क्योकि उस वक्त फ़ारसी सबसे ज्यादा उपयोग की जाने वाली भाषा थी। इससे हिंदी साहित्य के विकास में काफी मदद मिली। शायद हिंदी और फ़ारसी में सिद्धहस्त होने के कारण ही उर्दु भाषा का विकास संभव हो पाया।
हिन्दवी क्या है ?
आमिर खुसरो ने एक नई भाषा की रचना की जो हिन्दवी के नाम से जानी जाती है। हिन्दवी एक प्रकार से हिंदी और उर्दु तथा थोड़े बहुत फ़ारसी प्रभाव से मिल कर बनी थी। हिन्दवी को देहलवी के नाम से जाना जाता है जिसे बाद में कुछ लोग उर्दु से जोड़ने लगे।
आमिर खुसरो की रचनाएँ
आमिर खुसरो ने काफी साहित्य लिखे। हिन्दवी, फ़ारसी और अन्य भाषा में ख़ुसरो ने करीब करीब 4 लाख दोहे बनाये तथा 92 साहित्यिक किताबे लिखी। इनकी किताबे ऐतिहासिक, गद्य-पद्य , उपन्यास, शेख निजामुद्दीन औलिया के सूफी के दर्शन, धर्म, संगीत, कला आदि से सम्बंधित है।
इनमे कुछ प्रमुख है जैसे :
- मिफ्ताहुल फुतुह जलालुद्दीन खिलजी के सैन्य अभियान के बारे में है
- किरान उस सदाएन आँखों देखा वृतांन्त है जो सुल्तान कैकुबाद और बुखरा खान (बंगाल का गवर्नर ) के बीच अवध में हुई बैठक के बारे में है।
- खाजैनुल फुतुह एक ऐतिहासिक वर्णन है जो अलाउद्दीन ख़िलजी की विजयों के बारे में बताती है।
- आशिका में अलाउद्दीन ख़िलजी के पुत्र ख़िज्र खान और गुजरात के राणा की पुत्री देवल रानी की प्रेम कथा से सम्बंधित है।
- तुग़लक़नामा गियासुद्दीन तुगलक के शासन से सम्बंधित है
- इज़ाज़-ए-खुसरवी आमिर खुसरो का पत्र संग्रह है जो उन्होंने अपने दोस्तों को लिखे। इसमें कुछ कागज़ात और दस्तावेज़ भी है।
इसके अलावा लखनौती का फतनामा, नूह सिफिर आदि महत्वपूर्ण रचनाये है।
भारत का तोता
आमिर खुसरो को अपनी विस्तृत कला हुनर के कारण उन्हें ‘तूती-ए-हिन्द’ या ‘भारत का तोता’ कहा जाता है। उन्होंने बड़े बड़े सुल्तानों के दरबार में दरबारी कवि के रूप में सेवाएं दी।
अमीर खुसरो की रचनाओं की कमियां
आमिर खुसरो की ऐतिहासिक रचनाएँ अपने शासक की काफी प्रशंसा करती है जो की कई जगहों पर बड़ी चढाई हुई लगती है। खुसरो ने उनकी कमज़ोरियों और कमियों को छुपा लिया है। ऐसा लगता है की खुसरो द्वारा लिखी गयी ऐतिहासिक किताबे या तो शासक के कहने पर या उनकी कृपा के लिए लिखी गयी थी। क्योकि आमिर खुसरो अपनी युवास्था से ही राजकीय संरक्षण में थे।
लेकिन आमिर खुसरो ने जान बूझकर नहीं लिखी है। खुसरो ने उन बातो को भी अपने ऐतिहासिक साहित्यो में नहीं लिखा जिन्हे वे नहीं लिखना चाहते थे। लेकिन मुहम्मद बिन तुगलक के मामले में उन्होंने जियाउद्दीन बरनी की तरह तथ्यों को तोडा-मरोड़ा नहीं है।
आमिर खुसरो के समकालीन शासक कौन कौन थे ?
आमिर खुसरो 13वी शताब्दी के मध्य से लेकर 14वी शताब्दी के शुरुआत के शासको के समकालीन है। शुरुआत में बलबन से लेकर खिलजी और तुगलक शासको के बारे में इन्होने लिखा है। बलबन, जलालुद्दीन खिलजी, अलाउद्दीन खिलजी, गियासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद बिन तुगलक जैसे बड़े बड़े शासको के समकालीन रहे है।
आमिर खुसरो और निजामुद्दीन औलिया
13वी शताब्दी के महान सूफी संत निजामुद्दीन औलिया काफी रहस्यमयी और चिश्ती संप्रदाय के सूफी संत थे। आमिर खुसरो इनके बेहद करीबी शिष्य माने जाते है। खुसरो की रचनाओं में संत औलिया का सूफी प्रभाव साफ दिखाई पड़ता है। इनकी साहित्य और संगीत सूफी रसधारा में भीगे हुए है।
खुसरो अपने गुरु संत औलिया से इतना प्यार करते थे की उन्होंने एक ही कब्र में दोनों को दफ़नाने की ख्वाहिश जाहिर की थी। दिल्ली में हज़रत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह है जहाँ संत औलिया के करीब आमिर खुसरो की भी कब्र है।
आमिर खुसरो मध्यकालीन भारत में हिन्दू-मुसलंमान संस्कृतियों के एक समन्वय बिंदु के रूप में उपस्थित है। उनके साहित्य और नवीन कलाएं इतिहास की बहुमूल्य स्त्रोत है। खुसरो उस काल के कवि, संगीतज्ञ, सैनिक है जब दिल्ली सल्तनत चरमोत्कर्ष पर थी।
About the Author
Ankita is a German scholar and loves to write. Users can follow Ankita on Instagram
Why is Saturn’s status as a giant planet in question ?
Saturn is a large planet with a mass of about 100 times that of Earth….
Tinkathiya System – तिनकठिया प्रणाली
The Tinkathia system, often called the “tinkathia contract” or the “indenture system,” was an unfair…
शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organization)-SCO kya hai [UPSC GK]
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक स्थायी अंतरसरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है। शंघाई सहयोग संगठन (SCO –…
What is The Kármán Line ?
The Kármán Line, located 100 kilometers above sea level, serves as an imaginary boundary between…
दो पहिये वाहनों में डीजल इंजन का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है?
हमारे पास कई वर्षों से ऑटोमोबाइल इंजिन्स में केवल दो इंजिन्स हैं – पेट्रोल और…
व्यपगत का सिद्धांत (Doctrine of lapse)
व्यपगत के सिद्धांत (Doctrine of Lapse) को शांतिपूर्ण विलय (Annexations of Peace) भी बोलते है।…