lord dalhauji

व्यपगत का सिद्धांत (Doctrine of lapse)

व्यपगत के सिद्धांत (Doctrine of Lapse) को शांतिपूर्ण विलय (Annexations of Peace) भी बोलते है। व्यपगत का सिद्धांत के अनुसार लार्ड डलहौजी ने औपनिवेशिक भारत की कुछ महत्वपूर्ण रियासतें ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर ली।

डलहौज़ी देसी रियासतों के बारे क्या सोचता था ?

डलहौजी यह मानता था की झूठे रजवाड़ों और कृत्रिम मध्यस्थ शक्तियों द्वारा प्रशासन की पुरानी पद्धति से प्रजा की मुसीबतें बढ़ती हैं और यह रजवाडो की पद्धति गलत है, को ध्यान में रखकर ही उसने व्यपगत के सिद्धांत (Doctrine of Lapse) को लागू किया।

व्यपगत का सिद्धांत (Doctrine of lapse)
लार्ड डलहौजी स्त्रोत : विकिपीडिया

वास्तव में उसकी स्पष्ट और सीधी स्कॉटिश मनोवृति यह चाहती थी कि मुगल साम्राज्य की सर्वशक्ति के मुखोटे को तोड़ दिया जाए और जो भारतीय राज्य मुगलों के उत्तराधिकारी होने का दावा करते हैं उन्हें समाप्त कर दिया जाए।

मुगल साम्राज्य के पतन और मराठा संघ की हार के पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी ही भारत की सर्वश्रेष्ठ बन गई थी। डलहौजी का विचार था कि स्वस्थ प्रशासन और बुद्धिमत्ता पूर्ण नीति के अनुसार कंपनी का कर्तव्य है कि वह अधिक राजस्व को और प्रदेशों को प्राप्त करने का कोई भी अवसर, जो समय-समय पर उसे मिले, हाथ से न जाने दे। चाहे वह अवसर स्वाभाविक उत्तराधिकारी की मृत्यु से ही प्राप्त क्यों न हो अथवा किसी अन्य प्रकार के कारणों द्वारा उत्तराधिकारी के न होने से प्राप्त हो, जहां कि हिंदू कानून के अनुसार गोद लेने की प्रथा में सरकार द्वारा स्वीकृति आवश्यक है।

उन अवस्थाओं में गोद लेने के अधिकार के स्थान पर सर्वश्रेष्ठ शक्तियों द्वारा व्यपगत का अधिकार स्थापित किया गया था क्योंकि जो शक्ति अधिकार देती है वह भी सकती है।

कंपनी के सामने तीन प्रकार की रियासतें थी

उसके अनुसार भारत में तीन प्रकार की रियासतें थी

  • वे रियासते जो कभी भी उच्चतर शक्ति के अधीन नहीं थी और ना ही कर देती थी।
  • वे भारतीय रियासतें जो मुगल सम्राट अथवा पेशवा के अधीन थी और उन्हें कर देती थ परंतु अब अंग्रेजों के अधीन आ चुकी थी।
  • वे रियासतें जो अंग्रेजों ने सनदो द्वारा स्थापित की थी अथवा पुनर्जीवित कर ली थी।

अपनी नीति का 1854 में पुनः अवलोकन करते हुए डलहौजी ने कहा था कि –

“प्रथम श्रेणी की रियासतों के गोद लेने के मामलों में हमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। दूसरी श्रेणी के गोद लेने के लिए रियासतों को हमारी अनुमति अति आवश्यक है और इसमें हम मना भी कर सकते हैं परंतु प्राय हम अनुमति दे देंगे। परंतु तीसरी श्रेणी की रियासतों में मेरा विश्वास है कि उत्तराधिकार में गोद लेने की आज्ञा दी ही नहीं जानी चाहिए। “

डलहौजी

क्या व्यपगत का सिद्धांत लार्ड डलहौज़ी ने बनाया था ?

डलहौजी ने यह नया सिद्धांत नहीं बनाया था। 1834 में भी कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ने यह कहा था कि पुत्र के न होने पर दत्तक पुत्र लेने का अधिकार हमारी ओर से देसी रियासतों को एक अनुग्रह (grace) है और विशेष अनुकंपा तथा स्वीकृति है जो एक अपवाद के रूप में देनी चाहिए। गृह सरकार ने 1840 के वर्षो में ही लिखा था कि सबके लिए एक जैसी नीति अपनानी चाहिए और गवर्नर जनरल को आज्ञा दी थी कि –

“कोई भी सीधा और स्पष्ट अवसर जो नए करो को अथवा प्रदेशों को प्राप्त करने का हो , को नहीं खोना चाहिए और इसके अतिरिक्त शेष सभी स्थाई अधिकारों को हमें पालन करना चाहिए। “

इन्हीं आज्ञा का पालन करते हुए 1839 में मांडवी राज्य, 1840 में कोलाबा और जालौर राज्य और 1842 में सूरत की नवाबी को समाप्त कर दिया गया था।

डलहौज़ी का व्यपगत सिद्धांत की ओर ज्यादा झुकाव ?

डलहौज़ी का ध्यान था कि इस आज्ञा का अक्षरतः पालन किया जाना चाहिए और कंपनी को प्रदेशों को प्राप्त करने का कोई भी अवसर नहीं खोना चाहिए। लेकिन उससे पहले उसके पूर्व अधिकारी यथासंभव विलय नहीं करते थे और डलहौजी की यह नीति थी कि यथासंभव विलय का कोई भी अवसर होना नहीं खोना चाहिए।

परंतु हम यह कह सकते हैं कि अत्यधिक उत्साही गवर्नर जनरल ने कुछ ऐसे रियासतों को भी, जो संरक्षित मित्र (Protected Allies) थी, एक आश्रित राज्य (Dependent principalities) या अधीनस्थ राज्य (Subordinate states) मान लिया था और इसीलिए राजपूत राज्य करौली के मामले में डलहौजी के निर्णय को बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टरो ने भी अस्वीकार कर दिया था।

व्यपगत सिद्धांत से किन किन राज्यों का विलय हुआ था ?

जो राज्य व्यपगत के सिद्धांत अनुसार विलय कर ले गए थे, वे थे:

  • सतारा (1848)
  • जैतपुर और संबलपुर (1849)
  • बघाट (1850)
  • उदेपुर (1852)
  • झांसी (1853)
  • नागपुर (1854)

सतारा का विलय कैसे हुआ ?

व्यपगत सिद्धांत के अनुसार विलय किया गया प्रथम राज्य सतारा था। सतारा के विलय से पहले , लॉर्ड हेस्टिंग्स ने 1818 में मराठा शक्ति को समाप्त करके शिवाजी के वंशज प्रतापसिंह को सतारा का राज्य उसको और उसके बेटे और उत्तराधिकारी को दे दिया था। 1839 ईस्वी में राजा प्रतापसिंह को गद्दी से उतार कर राज्य उसके भाई अप्पासाहेब को दे दिया गया था। राजा अप्पासाहेब का कोई पुत्र नहीं था उन्होंने मृत्यु से कुछ दिन पहले ही कंपनी की अनुमति के बिना दत्तक पुत्र बना लिया था।

मुंबई परिषद के प्रमुख शहर सर जॉर्ज क्लार्क ने इस विलय के विरुद्ध परामर्श दिया था लेकिन डलहौजी ने इसे आश्रित राज्य घोषित करके इसका विलय कर लिया। बाद में बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टरों ने इसका समर्थन भी किया और कहा कि हम इससे पूर्णतया सहमत हैं कि भारतीय सामान्य कानून के अनुसार कंपनी के बिना दत्तक पुत्र लेने का कोई अधिकार नहीं है कॉमन्स सभा में जोसफ ह्यूम (Joseph Hume) ने इसकी तुलना “जिसकी लाठी उसकी भैंस” से की थी परंतु सभा ने इसे अनुमति दे दी थी।

सम्भलपुर का विलय कैसे हुआ ?

राज्य के राजा नारायण सिंह के पुत्र नहीं था और वह कोई दत्तक पुत्र भी नहीं बना सके इसलिए राज्य को 1849 में विलय कर लिया गया।

झाँसी का विलय कैसे हुआ ?

झांसी का राजा पेशवा के अधीन होता था। बाजीराव द्वितीय की हार के पश्चात लॉर्ड हेस्टिंग्स ने राव रामचंद से एक संधि की जिसके अनुसार उसे, उसके पुत्र और उत्तर उसके उत्तराधिकारियों को यह राज अधीनस्थ सहयोग की शर्तों पर दे दिया गया था।

राजा की 1835 ईस्वी में मृत्यु हो गई परंतु कंपनी ने राजा के चाचामह (Grand Uncle) को उसका उत्तराधिकारी स्वीकार कर लिया था। बूढ़े राजा कुछ वर्ष पश्चात मर गए और कंपनी ने राजा के वंशज गंगाधर राव को उत्तराधिकारी स्वीकार कर लिया। नवंबर 1853 में यह राजा भी बिना पुत्र के ही चल बसे। झाँसी राज्य को कंपनी ने विलय कर लिया और दत्तक पुत्र का अधिकार स्वीकार नहीं किया गया।

नागपुर का विलय कैसे हुआ ?

इस मराठा राज्य का क्षेत्रफल 80000 वर्ग मील था। 1817 में लॉर्ड हेस्टिंग्स ने भोंसले परिवार से एक शिशु राघवजी तृतीय को उत्तराधिकारी स्वीकार कर लिया था। सर रिचर्ड जेनकिंस (Sir Richard Jenkins) ने 1830 तक उसके संरक्षक के रूप में कार्य किया और उसके व्यस्क होने पर उसे शासन सौंप दिया।

1853 में राजा का बिना दत्तक पुत्र गोद लिए ही स्वर्गवास हो गया परंतु रानी को पुत्र गोद लेने को कह दिया था। जब रानी ने पुत्र गोद लेने का प्रस्ताव किया तो कंपनी ने यह स्वीकार नहीं किया और राज्य का विलय कर लिया गया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि राजा की निजी संपत्ति भी कंपनी ने यह कहकर प्राप्त कर ली कि यह तो राज्य की आय से ही प्राप्त की गई है।

यह आर्टिकल आधिकारिक स्त्रोत जैसे प्रमाणित पुस्तके, विशेषज्ञ नोट्स आदि से बनाया गया है। निश्चित रूप से यह सिविल सेवा परीक्षाओ और अन्य परीक्षाओ के लिए उपयोगी है।

ankita mehra

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